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HOLIKA DAHAN MUHURAT 2021: चूंकि रविवार को पूर्णिमा रात में 12:40 बजे तक रहेगी, अत: रात्रि 12:30 बजे से पूर्व तक में होलिका दहन कर लेना उचित रहेगा। By ARVIND DUBEY Edited By: ARVIND DUBEY
Publish Date: Sat, 27 Mar 2021 01:50:08 PM (IST) Updated Date: Mon, 29 Mar 2021 07:24:35 AM (IST) Holika Dahan Muhurat 2021: इस बार होलिका दहन में अशुभ भद्रा योग नहीं रहेगा। होलिका दहन के
दिन भद्राकाल सूर्योदय से शुरू होगा और दोपहर में समाप्त होगा। यानी होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6: 30 से रात 8:30 बजे तक होगा। वहीं भद्रा योग दोपहर 1:10 बजे तक ही रहेगा। चूंकि रविवार को
पूर्णिमा रात में 12:40 बजे तक रहेगी, अत: रात्रि 12:30 बजे से पूर्व तक में होलिका दहन कर लेना उचित रहेगा। इस बार होलिका दहन हस्त नक्षत्र, कन्या राशि एवं वृद्धि योग में किया जाएगा। स्वर्ण पदक
प्राप्त ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित गणेश शर्मा ने बताया कि किसी भी धार्मिक कार्य किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि भद्रा काल में मंगल-उत्सव की शुरुआत या
समाप्ति अशुभ मानी जाती है अत: भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी आस्थावान व्यक्ति शुभ कार्य नहीं करता। जानते हैं कि आखिर क्या होती है भद्रा? और क्यों इसे अशुभ माना जाता है? पुराणों के
अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनि की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग
के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव
कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं। पंचांग में भद्रा का महत्व : हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का
आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद,
नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। यूं तो 'भद्रा' का शाब्दिक अर्थ
है 'कल्याण करने वाली' लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती
है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है। जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता
है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है।