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Hindi NewsIndia Newsसमलैंगिक संबंध बनाना अपराध, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक कार्यकर्ताओं को झटका देते हुए समलैंगिक संबंधों को उम्रकैद तक की सजा वाला जुर्म बनाने
वाले दंड प्रावधान की संवैधानिक वैधता को आज बहाल रखा। न्यायमूर्ति जीएस... Admin Wed, 11 Dec 2013 12:36 PM Share Follow Us on __ उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक कार्यकर्ताओं को झटका देते हुए
समलैंगिक संबंधों को उम्रकैद तक की सजा वाला जुर्म बनाने वाले दंड प्रावधान की संवैधानिक वैधता को आज बहाल रखा। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने दिल्ली उच्च
न्यायालय द्वारा 2009 में दिए गए उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें वयस्कों के बीच पारस्परिक सहमति से बनने वाले समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था। पीठ ने विभिन्न
सामाजिक और धार्मिक संगठनों की उन अपीलों को स्वीकार कर लिया जिनमें उच्च न्यायालय के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि समलैंगिक संबंध देश के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों के खिलाफ हैं।
न्यायालय ने हालांकि यह कहते हुए विवादास्पद मुद्दे पर किसी फैसले के लिए गेंद संसद के पाले में डाल दी कि मुद्दे पर चर्चा और निर्णय करना विधायिका पर निर्भर करता है। शीर्ष अदालत के फैसले के
साथ ही समलैंगिक संबंधों के खिलाफ दंड प्रावधान प्रभाव में आ गया है। जैसे ही फैसले की घोषणा हुई, अदालत में पहुंचे समलैंगिक कार्यकर्ता निराश नजर आए। पीठ ने कहा कि भादंसं की धारा 377 को हटाने के
लिए संसद अधिकृत है, लेकिन जब तक यह प्रावधान मौजूद है, तब तक न्यायालय इस तरह के यौन संबंधों को वैध नहीं ठहरा सकता। फैसले की घोषणा होने के बाद समलैंगिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे शीर्ष
अदालत के फैसले की समीक्षा की मांग करेंगे। योग गुरु बाबा रामदेव के अलावा विभिन्न गैर सरकारी संगठनों की विशेष अनुमति याचिकाओं पर कोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला दिया है। बाबा रामदेव और कुछ
धार्मिक व गैर सरकारी संगठनों ने दिल्ली हाईकोर्ट के जुलाई 2009 के फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि हाईकोर्ट का यह फैसला देश की संस्कृति के लिए खतरनाक साबित होगा। याचिकाकर्ताओं की दलील थी
कि भारत की संस्कृति पाश्चात्य देशों से अलग है और इस तरह के आदेश देश की सांस्कृतिक नींव हिला सकते हैं। उनकी यह भी दलील थी कि समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि ये
प्रकृति के खिलाफ भी है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एपी शाह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने आपसी सहमति से वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की
श्रेणी से हटाने का आदेश दिया था। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-377 के तहत सहमति से भी बनाए गए समलैंगिक संबंधों को जुर्म माना गया है।