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बीते कुछ सालों में PWD को कई परियोजनाओं को लेकर मध्यस्थता के पास जाना पड़ा था और इनमें से ज्यादातर मामले परियोजनाओं में देरी को लेकर थे। क्योंकि देरी की वजह से प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत
बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। दिल्ली सरकार के पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण) विभाग ने बढ़ते वित्तीय घाटे को कम करने के लिए अपने अनुबंध की सामान्य शर्तों में एक बड़ा बदलाव कर दिया है और इसमें से
मध्यस्थता की शर्त को हटा दिया है। नए बदलाव के बाद पीडब्ल्यूडी और किसी निजी ठेकेदार के बीच किसी भी तरह का विवाद होने की स्थिति में मामले को केवल अदालतों में ही निपटाया जाएगा। इस बात की
जानकारी पीडब्ल्यूडी मंत्री प्रवेश वर्मा ने दी। वर्मा ने बताया कि नए टेंडरों से हमने मध्यस्थता संबंधी प्रावधान हटा दिया है। उन्होंने कहा कि अनुबंध की शर्तों में मध्यस्थता संबंधी प्रावधानों को
रखने का मूल उद्देश्य मुकदमेबाजी के बजाय किसी विवाद का त्वरित निपटारा करना था, लेकिन मध्यस्थता के लिए गए अधिकांश मामलों में सरकार को भारी वित्तीय घाटा उठाना पड़ा। इस फैसले की वजह को लेकर
मंत्री वर्मा ने आगे बताया कि 'बारापुला चरण 3 परियोजना में सरकार को लगभग 350 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था, क्योंकि पीडब्ल्यूडी ने मध्यस्थता आदेश के खिलाफ अपील नहीं की, जिससे निजी कंपनी को
फायदा मिला।' इसी मामले को लेकर एलजी वीके सक्सेना ने पिछले साल कहा था कि बारापुला चरण 3 परियोजना के लिए सरकार को 964 करोड़ रुपए की निविदा रकम की तुलना में 1,326.3 करोड़ रुपए का भुगतान
करना पड़ा। जिससे सरकार को 362 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। बीते कुछ सालों में लोक निर्माण विभाग को कई परियोजनाओं को लेकर मध्यस्थता के पास जाना पड़ा है, इनमें से ज्यादातर मामले परियोजनाओं में
देरी को लेकर थे। क्योंकि देरी की वजह से प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत, प्रारंभिक लागत से बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। जिससे सरकार पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। इससे पहले साल 2023 में तत्कालीन
आम आदमी पार्टी सरकार की लोनिवि मंत्री आतिशी ने भी विभाग में बड़ी संख्या में मध्यस्थता मामलों को देखते हुए सरकारी खजाने पर बढ़ते वित्तीय बोझ का मुद्दा उठाया था। ऐसे में इस बोझ को कम करने के
लिए उन्होंने अधिकारियों को विभाग के कामकाज के तरीके में बदलाव लाने का निर्देश दिया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी स्थिति फिर से उत्पन्न ना हो। बता दें कि पीडब्ल्यूडी के पास उनके
कानूनी मामलों को लड़ने के लिए फिलहाल लगभग आधा दर्जन मध्यस्थों का पैनल है। क्योंकि नियमों के अनुसार, पैनल में शामिल मध्यस्थ के पास एक समय में पीडब्ल्यूडी के पांच से अधिक मामले नहीं होने
चाहिए। 'मध्यस्थता' विवादों के निपटान के लिए एक वैकल्पिक विवाद समाधान (अल्टरनेट डिस्प्यूट रिजोल्यूशन) पद्धति है, जिसमें सभी पक्षकार अपने विवादों को न्यायालय के बाहर एक तटस्थ तीसरे
पक्ष द्वारा निपटाने के लिए सहमत होते हैं, इसी को मध्यस्थ कहा जाता है। इसके द्वारा दिए गए निर्णय दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी होते हैं। यह प्रक्रिया मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 द्वारा
शासित होती है।