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धार्मिक नगरी वाराणसी-इलाहाबाद के बीच बसा भदोही संसदीय क्षेत्र। कालीन निर्माण व निर्यात का सबसे बड़ा केंद्र। हजारों युवाओं के रोजगार का एकमात्र साधन...। चार हजार करोड़ रुपये सालाना का कारोबार
करने वाले... धार्मिक नगरी वाराणसी-इलाहाबाद के बीच बसा भदोही संसदीय क्षेत्र। कालीन निर्माण व निर्यात का सबसे बड़ा केंद्र। हजारों युवाओं के रोजगार का एकमात्र साधन...। चार हजार करोड़ रुपये सालाना
का कारोबार करने वाले इस संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए एक ऐसे रहनुमा की तलाश है जो यहां की स्वास्थ्य, शिक्षा के साथ बुनियादी व्यवस्था में सुधार कर सके। मगर 80 के दशक के बाद से जातीयता की
राजनीति के फेर में यह क्षेत्र ऐसा उलझा कि यहां की रहनुमाई करने वाले तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ते गए और अपने हुनर एवं उंगलियों के दम पर पूरी दुनिया में कालीन के अद्भुत नमूने तैयार करने वाले
जहां के तहां हैं। एक बार फिर चुनाव का शोर मतदाताओं के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। मगर इन सबके बीच कहीं जातिवाद तो कहीं राष्ट्रवाद और उद्योग की बेहतरी के मुद्दे हावी हैं। मतदान में अब चंद घंटे
बचे हैं मगर यहां के मतदाताओं का मिजाज इस बार त्रिकोणीय संघर्ष की ओर संकेत दे रहा है। भदोही के राजनीतिक मूड भांपती रिपोर्ट- भदोही पहले बनारस का हिस्सा हुआ करता था। सत्तर के दशक कालीन बनाने
की विधा ने इस शहर को पूरी दुनिया में अलग पहचान दिलायी। कोई ऐसा गांव या मुहल्ला नहीं जहां पर कालीन का काम न होता हो। कालीन यहां की पहचान में समाया हुआ है। वर्तमान में यहां के सांसद वीरेन्द्र
सिंह मस्त हैं मगर भाजपा ने उन्हें बलिया से टिकट दिया है। 2014 में उन्होंने बसपा के कद्दावर नेता राकेशधर त्रिपाठी को हराया था। इस बार भाजपा ने जातीय समीकरण को देखते हुए मझवां (मिर्जापुर) से
तीन बार लगातार विधायक रहे रमेशचंद बिंद को मैदान में उतारा है। डेढ़ माह पूर्व उन्होंने बसपा को छोड़ भाजपा की सदस्यता ली थी। कांग्रेस ने यहां बाहुबली व आजमगढ़ से चार बार सांसद व इतनी ही बार
विधायक रहे रमाकांत यादव पर दांव खेला है। सपा-बसपा गठजोड़ के तहत उक्त सीट बसपा के खाते में गई है। पार्टी प्रमुख मायावती ने यहां से पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्र को मौका दिया है। ब्राह्मण, बिंद,
यादव, मुस्लिम, दलित बहुल वोटरों वाले इस लोकसभा सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार नजर आ रहे हैं। भाजपा ने रमेशचंद बिंद को मैदान में उतार कर पिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश की है। जबकि
गठबंधन ब्राह्मण प्रत्याशी के साथ यादव, मुस्लिम व दलित गठजोड़ से चुनावी नैया पार करने की जुगत में है। कांग्रेस ने आजमगढ़ से भाजपा के पूर्व सांसद रहे रमाकांत को टिकट देकर दोनों दलों की मुश्किलें
बढ़ाई हैं। ऐसे में तीनों प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर के आसार बन रहे हैं। गंगा कटान का मसला नहीं बना मुद्दा : ज्ञानपुर से करीब एक किमी दूर मिल्की गांव। दोपहर के एक बजे हैं। कड़ी धूप
व गर्म हवा के थपेड़ों के चलते सड़क पर एक मड़ई में चाय-पान की दुकान पर बैठे कुछ लोगों से मुलाकात हुई। केतली से चाय निकालते हुए दुकानदार महेन्द्र बोले, ईहां दूई जने के बीच लड़ाई दिखात हव... बाकी
लोगन के भी वोट पड़े मगर जेकर जवन बिरादरी रहे उहे ओके वोट दिहे... बात पूरी हुई भी न थी कि शिव कुमार बोल पड़े, पहले देश देख फिर जाति-बिरादरी। अब तक ऐही के चक्कर में सब खत्म हो गयल...
एक बार बात चल पड़ी तो हर कोई सियासी दलों के अच्छाई-बुराई में लग गया। जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर भदोही शहर स्थित है। करीब करीब दो लाख की आबादी यहां है। यहां पर 65 हजार मतदाता हैं।
मुस्लिम बहुल इस शहर में कहीं उबड़-खाबड़ सड़क है तो कहीं पक्की। गलियों में इंटरलाकिंग मार्ग, प्रकाश के माकूल इंतजाम दिखे। शाम के पांच बजे डा. एसके दुबे की क्लीनिक पर पहुंच गए। कई मरीज एवं उनके
परिजन बैठे मिले। बात शुरू हुई तो क्या माहौल है इधर... कितने का कारोबार होता है... विकास हुआ है... अब्दुल्ला, लियाकत, नजरुद्दीन कहते हैं, तीन तलाक का मुद्दा गलत है। चुनाव है तो विकास की बात
होनी चाहिए। बार-बार वहीं मुद्दा क्यों उठाया जा रहा। प्रवेश कुमार व राजेश तिवारी कहते हैं, राष्ट्रवाद के नाम पर वोट जाएगा। कालीन कारोबारी उमेश मौर्य कहते हैं, यहां तो दो दशक से चुनाव में
जातिवाद हावी रहा है। इस बार भी वैसा ही दिख रहा। प्रकाश दीक्षित कहते हैं, यहां कालीन उद्योग की बेहतरी, बुनकरों, मजदूरों का जीवन स्तर ऊंचा करने, किसानों की समस्याएं, गंगा
कटान का मसला कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा। कहीं राष्ट्रवाद तो कहीं जातिवाद में उलझे वोटर : भदोही शहर से ज्ञानपुर होते हुए जीटी रोड गोपीगंज को जाने वाले मार्ग पर देवनाथपुर बाजार पड़ता है। जिले
में प्रसिद्ध चाय व नाश्ते की दुकान पर करीब एक दर्जन युवा नजर आए। उनसे बात करने पर बाजार में राष्ट्रवाद की बयार बहने का अंदाजा नजर आया। रमेश मौर्य कहते हैं कि आजादी के बाद किसी भी सरकार ने
पाक को मुंहतोड़ जबाव नहीं दिया था। सेना के जवानों ने बॉर्डर क्रास कर तीन सौ आतंकियों को मार गिराया। राजेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव किसान सम्मान निधि की सराहना करते हैं। कुछ दूरी पर
खेत में काम कर रहे बनवारी मिले... खाते में पैसा आया क्या? बोले, एक बार आई रहल बा... इंतजार करत हई कि दोबारा आयी मगर अबही त नाही मिलल। सियासी माहौल पर बनवारी कहते हैं कि आसपास के गांव में
बिरादरी पर वोट पड़े। जौनपुर जिले के बॉर्डर के समीप पांच हजार आबादी वाला गांव तुलसीचक। यादव बाहुल्य वाला यह गांव वोट के नाम पर सिर्फ एक नाम लेता है। पास के गांव के लोग कहते हैं कि यहां के
लिए विकास कोई मायने नहीं रखता, जातिवादी राजनीति के चक्रव्यूह में पूरा गांव है। गांव के सवर्ण राष्ट्रवाद के नाम पर वोट देने की बात कहते हैं। क्षेत्रीय नहीं, राष्ट्रीय पार्टियों का देंगे साथ
जंगीगंज में कपड़े की दुकान पर कुछ लोग मिले। किसका साथ देगा यह गांव, पूछने पर अधिकांश 80 के दशक की याद करते हैं। बोले, तब और अब में बड़ा फर्क आया है। राजू सरोज कहते हैं कि तब जाति बिरादरी नहीं
थी। न ही कोई राष्ट्र के नाम पर वोट मांग रहा था। उस समय सांसद से हर कोई मिल लेता था और जो कह देते थे काम हो जाता था। ई पूरा गांव एक ही पार्टी को वोट देता रहा है और आज भी देगा। रामराज यादव
कहते हैं कि चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि भूल जाते हैं। पिछले तीन दशकों से जनप्रतिनिधियों ने वोटरों को छला। साथ ही इस बात को स्वीकार भी किया कि सरकारों ने विकास किया, लेकिन इससे कहां हालात
सुधरे। प्रमुख मुद्दे औराई में चीनी मिल बंद पड़ी वाराणसी जनपद का हिस्सा रहे भदोही में पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय श्यामधर मिश्र के प्रयास से वर्ष 1971 में औराई में चीनी मिल की स्थापना की
गई थी। साढ़े चार सौ सीजनल व तीन सौ रेगुलर समेत 15 सौ लोग मिल में रोजगार करते थे। पूर्वांचल के जनपदों में स्थापित 40 क्रय केंद्रों पर अन्नदाता गन्ना बेचकर मालामाल हुआ करते थे। अधिकारियों की
उदासीनता के कारण मिल पर 31 दिसंबर 2006 को ताला लटक गया। कर्मचारियों के साथ ही किसानों को करारा झटका लगा। तब से लेकर आज तक सभी राजनीतिक दलों ने लोकसभा व विधानसभा चुनाव के दरम्यान मिल चालू
कराने का वादा किया, लेकिन उस पर किसी ने भी अमल करना मुनासिब नहीं समझा। कटान की समस्या का समाधान नहीं गंगा कटान के कारण डीघ ब्लाक क्षेत्र के छेछुआ, भूर्रा व हरीरामपुर गांव का अस्तित्व संकट
में हैं। आगामी 10 सालों में तीनों गांवों का अस्तित्व मिट जाएगा। वर्ष 2011 में बीएचयू से आई विशेषज्ञों की टीम ने उसी समय चेताया था। बचाव की दिशा में उनके द्वारा सुझावों पर सरकार ने अमल नहीं
किया। इतना ही नहीं, आजादी के सात दशकों में ही ढाई सौ बीघा से अधिक जमीन मिर्जापुर में चली गई। हर साल गंगा बरसात के दिनों में उत्तर की ओर खिसक रही है। ऐसे में कटान की जमीन दक्षिण मिर्जापुर की
ओर चली जाती है। गंगा कटान से हो रही तबाही का मुद्दा पार्टियों के एजेंडे से गायब है। मार्ट शोपीस, अधर में जीटी रोड निर्माण पौने दो सौ करोड़ रुपए से निर्मित कारपेट एक्सपो मार्ट शोपीस बना हुआ
है। कालीन मेला आयोजन की उम्मीदें परवान चढ़ती नजर नहीं आ रहीं। इसके अलावा वाराणसी, भदोही, दुर्गागंज होते हुए प्रयागराज के जीटी रोड निर्माण कराने की योजना का कुछ अता-पता नहीं। अधिकारियों की टीम
ने सर्वे किया और फिर नदारद हो गए। सौ शैय्या अस्पताल आदि आधी अधूरी योजनाएं परवान चढ़ने का नाम नहीं ले रहीं। बाहरी बनाम स्थानीय भी बना है मुद्दा मतदान के अंतिम दो दिन पहले भदोही में बाहरी
बनाम स्थानीय का मुद्दा एक दल ने उठा दिया है। पूरे भदोही में इसे तेजी से प्रचारित किया जा रहा है। भाजपा ने रमेश बिंद को प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने रमाकांत यादव को। गठबंधन ने रंगनाथ
मिश्र को उतारा है। रमेश बिंद व रमाकांत यादव दूसरे जनपद के रहने वाले हैं। अंतिम समय में इस मुद्दे पर गठबंधन के कार्यकर्ता यह कहते फिर रहे कि स्थानीय सांसद होगा तो कभी भी मिल सकते हैं।
राष्ट्रवाद-जातिवाद के बजाए अब इस पर भी चौराहों पर चर्चा होने लगी है। औराई में महेन्द्र कुमार कहते हैं कि सांसद ऐसा हो जो लोगों के बीच रहे। देशहित और विकास की बात करे। लाला नगर माधोपुर के
कपड़ा कारोबारी शिव प्रकाश कहते हैं कि देश को देखना है तो कैसा स्थानीय और कैसा बाहरी। आम के बगीचे की रखवाली करते राजेन्द्र बोले, जेके पूरा गांव देही ओही के हमहू देब। अबही त सबही आवत हव,
वैसे... देश पहले हव बाद में बाकी सब। 2014 का रिजल्ट नाम पार्टी वोट मिले वीरेंद्र सिंह मस्त भाजपा 403695 राकेशधर त्रिपाठी बसपा 245554 सीमा मिश्रा
सपा 167150 तेजबहादुर यादव जद यू 26995