सेहत: प्रदूषण से बचाव

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पिछले तीन-चार साल से अक्तूबर का महीना आते ही दिल्ली की आबोहवा खराब हो जाती है। यहां की हवा में दम घुटने लगता है और अक्सर लोग खांसते-छींकते नजर आते हैं। दिवाली के बाद दिल्ली गैंस चैंबर बन


जाती है और चारों तरफ धुआं और धुंध ही धुंध (स्मॉग) नजर आता है। न तो बाहर कुछ दिखाई देता है, न ही सांस ली जाती है। हवा की गुणवत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकार को एडवाइजरी


जारी करनी पड़ती है और छोटे बच्चों के स्कूलों को बंद करना पड़ता है। अक्तूबर के दूसरे हफ्ते से दिल्ली की हवा में जहर घुलने लगी है और हो सकता है दिवाली की अगली सुबह तक सांस लेना मुहाल हो जाए। ऐसे


में सेहत के प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है। डॉक्टरों के मुताबिक सात साल से छोटे बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, इसलिए प्रदूषण के बढ़े स्तर का उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। वैसे तो


जब हवा की गुणवत्ता ही गंभीर श्रेणी में हो तो क्या बच्चा, क्या बुजुर्ग कोई भी इसका शिकार हो सकता है। हालांकि कुछ सावधानियां बरत कर इस प्रदूषण से पार पाया जा सकता है। लक्षण स्मॉग के चलते दम


घुटना, खांसी, जुकाम, सिर में दर्द, आंखों में जलन और सांस लेने की तकलीफ से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। पार्क में न टहलें सुबह की सैर, योग और कसरत खुद को चुस्त और स्वस्थ रखने के लिए बहुत जरूरी


हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप स्मॉग में भी पार्क में टहलने, कसरत या योग करने जाएं। इसलिए जितना हो सके घर में ही योग और कसरत करें। बच्चों को भी पार्क या खुले में खेलने या जाने से रोकें।


बाहर कम निकलें अगर आपके शहर में स्मॉग की चादर फैली हुई है तो कुछ दिन घर से बाहर घुमने या फिर खाना खाने की योजना पर लगाम लगाएं, क्योंकि ऐसा करना आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। अगर आप


नौकरी नहीं कर रहे या फिर कोई बहुत जरूरी काम न हो तो घर से कम ही बाहर निकलें। मास्क का इस्तेमाल हालांकि यह व्यावहारिक नहीं है कि स्मॉग की वजह से घर से बाहर निकलना छोड़ दिया जाए। इसलिए बाहर


जाते समय मुंह पर अच्छी गुणवता वाले मास्क का प्रयोग करें। मास्क नहीं होने पर मुंह पर सूती कपड़ा बांधें। आंखों को जलन से बचाने के लिए ग्लासेस का इस्तेमाल करें। शरीर को ढंक कर रखें वातावरण में


धूल के कणों से आपकी त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है, इसलिए जितना हो सके पूरे बाजू के कपड़े पहनें। साथ ही नहाने में नीम के पानी का इस्तेमाल करें। अगर हो सके तो हफ्ते में कम से कम दो बार तीन से


चार नीम की पत्तियों का सेवन करें। इससे रक्त शुद्ध होता है। खूब पानी पीएं कहते हैं पानी से बेहतर कुछ भी नहीं। यह शरीर को डीटॉक्सफाइ करता है। इसलिए प्रदूषण के प्रभाव से बचना है तो खूब पानी


पीएं। दिन में आठ से दस गिलास पानी पीएं। इसके अलावा अनार का जूस भी पी सकते हैं। अनार खून को साफ करता है और दिल संबंधी होने वाले खतरे को कम करता है। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं जब शरीर अंदर से


कमजोर होता है, तो उसे बाहरी कारक आसानी से प्रभावित कर जाते हैं। इसलिए शरीर को अंदर से मजबूत करने के लिए दिनचर्या में गुड़, अदरक, हल्दी, तुलसी के पत्ते और शहद को शामिल करें। एक गिलास पानी में


5-6 तुलसी की पत्तियां, अदरक और गुड़ डाल कर पांच मिनट तक उबाल कर पीएं। इससे शरीर की रोग प्रतिरोेधक क्षमता में इजाफा होता है। प्रदूषण से सुरक्षित रहने के लिए हल्दी वाला दूध पीएं। हल्दी बच्चों


और बड़ों दोनों के लिए फायदेमंद होती है। तुलसी के पांच से छह पत्तों को रोज चबाएं या फिर पानी में तुलसी की पत्तियां उबाल कर पीएं। इससे अस्थमा या सांस संबंधी समस्याएं होने का खतरा कम होता है।


पानी का छिड़काव करें वातावरण में फैले धूल-कणों को घटाने के लिए अपने आस-पास पानी का छिड़Þकाव करें। बाहर की दूषित हवा घर की हवा को दूषित न करें इसके लिए घर के दरवाजोंं, खिड़कियों को बंद करके


रखें। इसके अलावा घर में कपूर जला सकते हैं। कपूर वायु शोधक का काम करता है। दिल और फेफड़ों पर असर वातावरण में कई दिनों तक छाए इस धुंध से दिल और फेफड़ों से सम्बंधित परेशानियां बढ़ सकती हैं। कारण


कि हवा में पाए जाने वाले धूल-कण सांसों के जरिए फेफड़े से खून में पहुंच जाते है इससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में डॉक्टर दिल और फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित मरीजों को घर में


ही रहने और हर समय दवा रखने की सलाह देते हैं।