70 साल पहले पोप फ्राँसिस को पुरोहिताई के लिए बुलावा - वाटिकन न्यूज़

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21 सितंबर 1953 का दिन था : युवा जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो एक पार्टी से पहले पापस्वीकार करने गए। करुणा का यह अनुभव उनके जीवन का निर्णायक क्षण बन गया। वाटिकन न्यूज वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 21


सितम्बर 2023 (रेई) : सत्तर साल पहले, 21 सितंबर 1953 को, पोप फ्राँसिस के पुरोहिताई बुलाहट का जन्म हुआ। पोप फ्राँसिस जिनका बपतिस्मा नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो है, लगभग 17 वर्ष के थे।


अर्जेंटीना में यह छात्र दिवस है, और कलीसिया के लिए संत मती का पर्व दिवस, जो एक पापी था, जिसे येसु ने प्रेरित बनने के लिए बुलाया था। पोप ने स्वयं बताया कि उस विशेष दिन में क्या हुआ था:


“पार्टी में जाने से पहले, मैं उस पल्ली में रुका, जहाँ मैं अक्सर जाता था, मुझे एक पुरोहित मिले, जिन्हें मैं नहीं जानता था, और मुझे पापस्वीकार करने की इच्छा हुई। यह मेरे लिए एक मिलन का अनुभव


था: मुझे लगा कि कोई मेरा इंतजार कर रहा था। लेकिन मुझे नहीं पता कि क्या हुआ था, मुझे याद नहीं है, मैं सचमुच नहीं जानता कि वहाँ वे पुरोहित क्यों थे, जिसे मैं नहीं पहचानता था। मुझे पापस्वीकार


करने की इच्छा क्यों महसूस हुई, लेकिन सच्चाई यह है कि कोई मेरे लिए इंतजार कर रहा था।" "वह काफी देर से मेरा इंतजार कर रहा था। पापस्वीकार के बाद मुझे लगा कि कुछ बदल गया है। मैं पहले


जैसा  नहीं था। मैंने बुलाने के समान एक आवाज सुनी : मुझे यकीन हो गया था कि मुझे पुरोहित बनना है। विश्वास में यह अनुभव महत्वपूर्ण है।" हम कहते हैं कि हमें ईश्वर को खोजना चाहिए, क्षमा


मांगने के लिए उसके पास जाना चाहिए, लेकिन जब हम जाते हैं, तो वे हमारा इंतजार करते हैं, वे पहले हैं! स्पैनिश में, एक शब्द है जिससे हम अच्छी तरह समझ सकते हैं: 'ईश्वर हमेशा पहले शुरू करते


हैं, वे हमारी प्रतीक्षा करते हैं! और यह वास्तव में एक महान अनुग्रह है: किसी ऐसे व्यक्ति को पाना जो आपकी प्रतीक्षा कर रहा हो। आप पापी हैं, लेकिन वे आपको क्षमा देने के लिए आपकी प्रतीक्षा कर


रहे हों। (पेंटेकोस्ट जागरण प्रार्थना 18 मई 2013) पोप फ्राँसिस की बुलाहट ईश्वर की करुणा के अनुभव से उत्पन्न हुई। पोप का आदर्श वाक्य है "मिसेरांदो अतक्वे एलीजेंडो", अर्थात, उसे दया


की दृष्टि से देखना और चुनना: यह आठवीं शताब्दी के पुरोहित, संत बेडे के एक उपदेश से लिया गया है, जिसमें वे येसु के बारे बोलते हैं। येसु ने चुंगी जमा करनेवाले मती को अपना प्रेरित चुना। येसु ने


मती को स्नेह से देखा और उसे अपने शिष्य के रूप में चुन लिया। संत पापा कहते हैं कि वे मत्ती के समान महसूस करते हैं... मैथ्यू की ओर येसु की वह उंगली...। मैं भी वैसा ही हूँ। मुझे भी वैसा ही लगता


है। मती की तरह। मती का भाव मुझे प्रभावित करता : उसने अपने पैसे पकड़ लिये, मानो कह रहा हो: “नहीं, मैं नहीं! नहीं, यह पैसा मेरा है!”। देखो, यह मैं हूँ एक पापी, जिस पर प्रभु ने अपनी दृष्टि


फेरी है, और मैंने तब यही कहा, जब मुझसे पूछा गया कि क्या मैं परमाध्यक्ष के रूप में अपना चुनाव स्वीकार करता हूँ। (फादर अंतोनियो स्पादारो के साथ साक्षात्कार, 19 अगस्त 2013)