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बाद में उसी दिन निजी टीवी न्यूज़ चैनलों के संगठन 'न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन' की तरफ से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इस बारे में जानकारी दी गई. यह पत्र
एनबीए के प्रमुख और इंडिया टीवी चैनल के मालिक रजत शर्मा द्वारा लिखा गया था. शर्मा लिखते हैं, ‘‘दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर नाकाबंदी किए जाने की वजह से तमाम रुकावटें खड़ी हो रही हैं. ऐसे हालात में
मीडियाकर्मियों के लिए विशेष कर्फ्यू पास की अनिवार्यता या उनके आवागमन संबंधी प्रतिबंधों से लॉकडाउन में चैनलों के कामकाज़ में भारी दिक्कत आएगी.’’ हालांकि शर्मा ने आदित्यनाथ को लिखे अपने पत्र
में प्रिंट और डिजिटल मीडिया के बारे में कोई बात नहीं कही थी, लेकिन उनकी बात सही है. लॉकडाउन के समय में मीडियाकर्मियों पर पास हासिल करने का दबाव बढ़ गया है. प्रशासन के टालमटोल वाले रवैये का
परिणाम यह हुआ कि न्यूजलॉन्ड्री दिल्ली-नोएडा के लिए पास पाने के लिए बीते दस दिनों से कोशिश कर रहा है, लेकिन अब तक पास नहीं मिल पाया है. न्यूजलॉन्ड्री के तीन कर्मचारी, जिसमें एक संपादक, एक
प्रोड्यूसर और एक रिपोर्टर, नोएडा में रहते हैं और काम के सिलसिले में दिल्ली आना-जाना होता है. लेकिन पास नहीं मिलने के कारण वे काम करने की स्थिति में नहीं हैं. नोएडा प्रशासन के आदेश के बाद
हमने पास के लिए दिए गए मेल पर आवेदन किया. आवेदन करने के दो दिन बाद तक कोई जवाब नहीं आया. फिर हमने पास के लिए जिम्मेदार लोगों से संपर्क करने की कोशिश की जो की कभी ना खत्म होने वाला सिलसिला
साबित हुआ. हमने नोएडा के जिला सूचना अधिकारी राकेश चौहान से संपर्क किया, तो वहां से बताया गया, ‘‘समाचार वेबसाइटों को पास की सुविधा नहीं दी जा रही है. यदि आप एक डिजिटल मीडिया संस्थान के लिए
काम करने वाले पत्रकार हैं, तो आप नोएडा से दिल्ली नहीं आ-जा सकते हैं.’’ चौहान ने हमें फोन पर बताया, ‘‘हम डिजिटल मीडिया को पास नहीं दे रहे हैं. शहर में लॉकडाउन है. आप घर से या जिले के भीतर काम
क्यों नहीं करते हैं?" हमने उनसे कहा कि हमारा ऑफिस दिल्ली में हैं. ऑफिस तो जाना ही होता है. ऐसे में नोएडा में रहकर कैसे काम कर सकते हैं? इस पर वे थोड़ा नाराज़ होकर कहते हैं, “अगर ऐसा है
तो आप दिल्ली में रहिए. डिजिटल चैनलों को अभी पास नहीं दे रहे हैं. मैं, डीआईओ के रूप में, आपको बता सकता हूं कि हम केवल बॉर्डर पास सैटेलाइट चैनल और प्रिंट मीडिया को दे रहे हैं. हम इसे हर किसी
को नहीं दे सकते.” हमने चौहान को समझाने की काफी कोशिश की कि फील्ड में काम करने या दफ्तर जाने के लिए पास की कितनी जरूरत पत्रकारों को होती है, लेकिन वे समझने को तैयार नहीं थे. वे मीडिया के
अलग-अलग हिस्सों में बंटवारा करके ही अपनी बात कह रहे थे. हमने कई अलग-अलग संस्थानों में पता किया तो हमने पाया कि एक न्यूज़ वेबसाइट को नोएडा प्रशासन द्वारा पास उपलब्ध कराया गया है. हमने वो पत्र
भी प्राप्त किया जो प्रशासन द्वारा उन्हें जारी किया गया है. सिर्फ एक रिपोर्टर नहीं बल्कि उस संस्थान के ग्यारह लोगों को नोएडा प्रशासन द्वारा पास दिया गया है. हैरानी कि बात यह है कि इन तमाम पास
पर चौहान का ही हस्ताक्षर है. हमने एक बार फिर चौहान से संपर्क किया और डिजिटल मीडिया को पास देने के संबंध में सवाल किया. इस पर चौहान कहते हैं, ‘‘हो सकता है उन्होंने किसी मीडिया हाउस के जरिए
पास लिया हो.’’ हमने चौहान को बार-बार समझाने की कोशिश की लेकिन वे मन बनाकर बैठे थे कि उन्हें पास नहीं देना है. एक समय के बाद स्थिति ऐसी हो गई कि आप किसी ऐसे रास्ते पर खड़े हों जिसके आगे बंद
दीवार खड़ी थी. फिर हमारे पास के लिए नोएडा के जिलाधिकारी सुहास एलवाई से संपर्क किया. इसके अलावा कोई रास्ता नहीं था. हालांकि हमने पहले जिलाधिकारी को ही कॉल किया था लेकिन उनके सहकर्मी ने हमें
बताया कि इसके लिए जिला सूचना अधिकारी से ही बात करनी होगी. सुहास एलवाई एक जाने माने बैडमिंटन चैंपियन हैं और एक सक्षम अधिकारी के रूप में उनकी प्रतिष्ठा है. नोएडा में कोरोना वायरस के संक्रमण को
रोकने में लापरवाही बरतने के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन जिलाधिकारी बीएन सिंह को हटाकर सुहास को नोएडा का जिलाधिकारी नियुक्त किया था ताकि यहां खराब होती स्थिति को कंट्रोल किया जाए.
उत्तर प्रदेश में आगरा के बाद सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज नोएडा में ही सामने आए हैं. हालांकि जिलाधिकारी तक पहुंचने में भी हमें परेशानियों से दो-चार होना पड़ा. हमने कई दिनों तक लगातार उन्हें कॉल
किया और बार-बार उनके सहयोगियों द्वारा एक ही जवाब आया कि वे मीटिंग में व्यस्त हैं. एक बार हमारी उनसे बात हुई तो उन्होंने कहा- “मैं अभी मीटिंग में हूं. आप अपनी ज़रूरत मैसेज कर दीजिए. हम बाद
में बात करेंगे.’’ जिलाधिकारी के कहे अनुसार हमने उन्हें सूचना पहुंचा दी लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. हमें ना जिलाधिकारी का कोई जवाब मिला और ना ही कोई पास. पास नहीं होने की स्थिति में हमारा
काम रुका रह गया. फोन पर बात नहीं हो पाने की स्थिति में 27 अप्रैल को हम जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचे ताकि उनके सामने अपनी परेशानी बता सकें लेकिन वहां हमारी उनसे मुलाकात नहीं हो सकी. एक बार फिर
जिलाधिकारी ऑफिस में मौजूद कर्मचारियों ने हमसे डिटेल लिखवा ली. वहां हमें कहा गया कि जल्द ही जिलाधिकारी से संपर्क कराया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ग्रेटर नोएडा में कलेक्ट्रेट ऑफिस के बिल्कुल
बगल में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, श्रीपर्णा गांगुली का कार्यालय है. गांगुली को भी मीडियाकर्मियों को बॉर्डर पास देने की जिम्मेदारी दी गई है. हमने उनसे मिलने की कोशिश की लेकिन हमें नहीं मिलने
दिया गया. वहां मौजूद कर्मचारी ने बताया कि वो पत्रकारों से नहीं मिल रही हैं इसके लिए आपको जिला सूचना अधिकारी से मिलना पड़ेगा.’’ जिला सूचना अधिकारी यानी राकेश चौहान जो पूर्व में पास देने से साफ़
इनकार कर चुके थे. हमने दोबारा उन्हीं के पास भेजा जा रहा था. हमने गांगुली को मेल भी किया लेकिन उसका कोई जवाब नहीं आया. उनके सहयोगी से हमने बात की तो वे किसी भी तरह के सहयोग की भूमिका में नजर
नहीं आए. वे कहते हैं, ‘‘मैम मीटिंग में हैं, आप अपना नाम और नंबर बता दीजिए. मीटिंग खत्म होने के बाद हम आपकी बातचीत करा देते हैं.’’ अब तक के अनुभव से हम जान चुके थे कि ‘बाद में संपर्क कराते
हैं’ दरअसल टालने का हथकंडा है. नोएडा प्रशासन ने एक बार फिर हमें सही साबित किया. कई दिनों तक लगातार कोशिश के बावजूद हमारी बात गांगुली से नहीं हो पाई.