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GWALIOR LOCKDOWN NEWS : ग्वालियर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। कोरोना महामारी को बेकाबू होने से रोकने के लिए आज से ठीक एक साल पहले 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में एक दिन के जनता
कर्फ्यू का आह्वान किया था। इस दिन शहरवासी स्व-अनुशासन में रहकर घरों में ही रहे, बाजार-मॉल बंद रहे और सवारी वाहन भी नहीं चले। एक दिन का जनता कर्फ्यू धीरे-धीरे लंबे लाकडाउन में तब्दील हो गया,
जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। अस्पतालों में मरीजों की संख्या और मरने वालों का आंकड़ा बढ़ता गया। सुखद पहलू यह भी था कि हमारे वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए न सिर्फ वैक्सीन बनाई,
बल्कि टीकाकरण भी आरंभ हो गया है। हालांकि 365 दिन बाद भी कोरोना का खतरा टला नहीं है। शहर, प्रदेश और देश में एक बार फिर कोरोना तेजी से बढ़ रहा है। अब पहले से अधिक सतर्कता बरतने का समय है। मास्क
और सुरक्षित शारीरिक दूरी का कड़ाई से पालन करना जरूरी है। जनता कर्फ्यू से लेकर लाकडाउन फिर अनलाक और अब टीकाकरण तक की अवधि में शहरवासियों के क्या रहे अनुभव। बाजारों, चौराहों के दृश्य कैसे
बदले, पेश है नईदुनिया की रिपोर्ट... जनता कर्फ्यू और लाकडाउन ने बदल दिया जीने का तरीका स्कूल-कालेज : जनता कर्फ्यू के बाद शिक्षा पद्धति पूरी तरह बदल गई। स्कूल, कालेज व कोचिंग सब बंद हो गए।
बच्चों ने घर पर आनलाइन पढ़ाई की और आनलाइन ही परीक्षा दी। निजी स्कूल, कालेज बंद होने से उनके स्टाफ व शिक्षकों की नौकरी भी संकट में आ गई। खानपान : कोरोना के चलते लाकडाउन में खानपान के
प्रतिष्ठान भी बंद रहे। लोग बाहर नहीं निकले तो घर का शुद्द भोजन खाया। इससे कई तरह की छोटी-मोटी बीमारियों से लोगों को राहत भी मिली। लोगों ने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खानपान को
तरजीह दी। चाय-समोसा आदि के छोटे-मोटे काम धंधे चौपट हो गए। लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया। दिनचर्या बदली : कोरोना काल से पहले लोग हर रोज समय से काम-धंधे व नौकरी पर निकल जाते थे।
लाकडाउन के चलते लोग घर पर ही रहे। स्वजनों को एक-दूसरे के साथ्ा बैठने, मिलने-जुलने का समय मिला। हालांकि घर में रहने से काम-धंधे बंद हो गए और रोजमर्रा की जरूरतों के सामान के लिए भी परेशानी खड़ी
हो गई। पूरे समय घर पर रहने से लोगों की दिनचर्या बदल गई। विशेषज्ञ का कहना है _कोरोना का एक साल हम देख चुके हैं कि किस तरह महामारी ने हमें और काम-धंधों को प्रभावित किया है। अब वही वक्त आ गया
जब पहली बार जनता कर्फ्यू और फिर लाकडाउन का दंश झेलना पड़ा था। हम सब जान चुके हैं कि इसे कैसे रोका जा सकता है। इस बार हमारे पास वैक्सीन का सहारा भी है। बस जरूरत जागरूकता व सावधानी रखने की।
टीकाकरण के साथ मास्क, सैनिटाइजेशन व सुरक्षित शारीरिक दूरी का पालन करें तो कोरोना को लौटने से रोका जा सकता है। _डा. एमएस राजवत, प्रतिनिधि डब्ल्यूएचओ व्यापारियों को सता रहा लाकडाउन का भय
_कोरोना के कारण जो संकट सरकार के आगे खड़ा है, वही आमजन व व्यापारी के सामने भी है। पिछले साल महज दस दिन का सहालग रहा था। सोचा था इस साल सहालग चलेगा तो कोरोनाकाल में उठाईं परेशानियों से कुछ
छुटकारा मिलेगा। व्यापारियों से कर वसूली उसी तरह से की गई जो पिछले सालों में की जाती थी, जबकि इस बार व्यापार नहीं चला। सरकार कोरोना रोकने के उपाय के साथ आर्थिक गतिविधियों को न रोके। _प्रवीण
अग्रवाल, मानसेवी सचिव चैंबर ऑफ कॉमर्स एक साल से घर से कर रहा हूं नौकरी _जनता कर्फ्यू लगा तो सोचा एक दिन घर में रहना है, पर उसके बाद लाकडाउन लग गया और दफ्तर जाना बंद हो गया। शुरुआत में तो
परेशानी नहीं हुई। लाकडाउन लंबा चला तो काम नहीं कर सके, कंपनी ने भी वेतन आधा कर दिया। बाद में घर से काम करना श्ुारू किया। अब लगा कि हालात सामान्य होंगे पर फिर कोरोना वापसी करने लगा। पिछले एक
साल से घर से काम कर रहा हूं। _सौरव शर्मा, इंजीनियर निजी कंपनी कोरोना में बहुत कुछ खोया तो सीखा भी _कोरोना के अब तक के अनुभव कड़वे रहे हैं। जब कोरोना आया तो घर से अस्पताल आते वक्त ऐसा लगता था
जैसे सीमा पर दुश्मन से लड़ने जा रहे हों। कोरोना के चलते मेरे ससुर की जान चली गई। अस्पताल में कोरोना वार्ड में ड्यूटी लगी तो परिवार से अलग रहना पड़ा। मैंने बहुत कुछ खोया है, लेकिन काफी कुछ सीखा
भी है। बीते एक साल में मरीज का इलाज करने में हमेशा गौरव महसूस हुआ। _एसोसिएट प्रो. डा.प्रतिभा गर्ग, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, कमलाराजा अस्पताल _बच्चों को पड़ोसी के सहारे छोड़कर मुझे कोरोना ड्यूटी
करनी पड़ती थी। जब घर जाते तो यही डर सताता था कि कहीं बच्चे मेरे कारण बीमार न पड़ जाएं। पति की नौकरी दूसरे शहर में हैं तो कई दिनों तक वह घर नहीं आते। मुझ पर कोरोना की ड्यूटी और घर की जिम्मेदारी
थी। बड़ी मुश्किल से यह वक्त गुजरा, अब फिर कोरोना की वापसी डरा रही है। _रेखा राठौर, लैब टेक्नीशियन