
- Select a language for the TTS:
- Hindi Female
- Hindi Male
- Tamil Female
- Tamil Male
- Language selected: (auto detect) - HI
Play all audios:
शहर बनारस की अजूबी गलियों के नामकरण के पीछे कई अनूठी कहानियां हैं। एक महिला का दस पुत्रों को एक साथ जन्म देने के कारण गली का नाम दस पुत्तर की गली पड़ा। किसी गली का नाम हाथी गली इसलिए पड़ा कि
उस गली में... शहर बनारस की अजूबी गलियों के नामकरण के पीछे कई अनूठी कहानियां हैं। एक महिला का दस पुत्रों को एक साथ जन्म देने के कारण गली का नाम दस पुत्तर की गली पड़ा। किसी गली का नाम हाथी गली
इसलिए पड़ा कि उस गली में ऐसा भवन है जिसके खंभों पर हाथी की आकृति बनी है। जानिए रोचक नाम वाली गलियों के नामकरण के पीछे की कहानी। दस पुत्तर की गली दस पुत्तर की गली के नामकरण के पीछे दो
कहानियां इस क्षेत्र में प्रचलित हैं। कुछ लोग बताते हैं कि करीब ढाई सौ साल पहले दसपुत्रे नाम के एक मराठी व्याकरणाचार्य इस गली में रहते थे। उन्हीं के नाम पर इस गली का नामकरण हुआ। वहीं ऐसे
दर्जनों लोग मिले जो दूसरी कहानी में ज्यादा विश्वास रखते हैं। उनकी मानें तो करीब तीन सौ साल पहले इसी गली में रहने वाली एक मराठी महिला ने दस पुत्रों को एक साथ जन्म दिया था। सभी को मरा समझ कर
परिजन उन्हें गंगा में प्रवाहित करने जा रहे थे तभी एक दाई की नजर नवजातों पर पड़ी। दाई के कहने पर परिजन पुन: सभी बच्चों को लेकर घर आ गए। फिर जैसा दाई ने बताया उन बच्चों के साथ वैसा किया गया।
दसों की सांसें चलने लगीं। भविष्य में वे सभी हट्टे-कट्टे जवान हुए। तभी से इस गली का नाम दस पुत्तर की गली हो गया। हाथी गली हाथी गली के नामकरण को लेकर कई कहानियां हैं। कोई कहता है कि दो सौ साल
पहले एक महिला ने हाथी जैसे बच्चे को जन्म दिया था तो किसी ने बताया इस गली में हाथी फंस गया था। लेकिन हाथी गली के नामकरण की हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। हाथी गली के नामकरण के पीछे एक विशाल भवन
है। करीब तीन सौ साल पुराने इस भवन का निर्माण जिन खंभों पर किया गया था, उन पर हाथी की आकृति बनी थी। वर्तमान में इस भवन में एक गुजराती परिवार रहता है। घर के आंगन के चारो ओर हाथी की आकृति वाली
कई घोड़िया अब भी हैं जो इस गली के नामकरण का प्रमाण देती हैं। भवन में गुजराती परिवार पिछली छह पीढ़ियों से रह रहा है। लट्टू गली लट्टू गली के नामकरण के पीछे भी दो कहानियां हैं। एक कहानी उसी दौर
की है जब पत्थर गली में जौहरी रहा करते थे। लोगों का मानना है कि इस गली में पत्थर के लट्टू बनाने वाले कारीगर रहते थे। बाद में पत्थर के लट्टू बनाने वालों ने लकड़ी के लट्टू बनाने शुरू किए।
धीरे-धीरे शहर के ऐसे हिस्से में बसने लगे जहां लकड़ियां सहज सुलभ थीं। दूसरी कहानी करीब 90 साल पुरानी है। 1928 में जब पहली बार बनारस शहर में बिजली का उत्पादन (भेलूपुर पॉवर हाउस) शुरू हुआ तो इस
इलाके में पहला बल्व, जिसे आम बोलचाल में लट्टू भी कहते हैं, इसी गली में लगाया गया था। चूहा गली चूहा गली के नामकरण बारे में मंगलागौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु बताते हैं कि अब से करीब तीन सौ
साल पहले एक मराठी संत ने यहां भगवान गणेश की आराधना की। उन्होंने ही भगवान गणेश का मंदिर बनवाया और मंदिर के बाहर पत्थर का विशाल चूहा भी स्थापित कराया। पत्थर से बना चूहा तो डेढ़ सौ साल पहले ही
टूट गया लेकिन उसकी स्मृति को बनाए रखने के लिए मंदिर के भवन के बाहर विशाल चूहे का चित्र बनवा दिया गया है। पत्थर गली बनारस की आम बोलचाल में हीरा, पुखराज आदि नगों को भी पत्थर कहा जाता है। इस
गली के नामकरण का भी राज इसी बोलचाल से जुड़ा है। अब से दो सौ वर्ष पूर्व यह गली हीरे-जवाहरात के कारोबारियों का ठीहा हुआ करती थी। इस गली में वे रहते थे, उनका कारोबार भी इसी गली से चलता था।
लिहाजा इस गली को लोग पत्थर गली कहने लगे। पतरसुट्टी गली मंगलागौरी मंदिर के निकट है पतरसुट्टी गली। बनारसी बोलचाल में पतरसुट्टी शब्द का भावार्थ है, बहुत ही दुबला-पतला। बमुश्किल एक फुट चौड़ाई के
कारण ही इसका नाम पतरसुट्टी गली पड़ा है। डेढ़ मन की गली इस गली में तीन सौ साल पहले सिर्फ एक ही भवन था। उस भवन के चारो ओर गायों के पानी पीने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूर पर हौदे बनाए गए थे। पत्थर के
एक-एक हौदे का वजन डेढ़-डेढ़ मन था। डेढ़ मन वाले इन हौदों के कारण ही इस गली का नाम डेढ़ मन की गली पड़ा।