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बिहार में चुनाव की घोषणा से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल यूनाइटेड (जदयू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के महागठबंधन को उस समय दोहरा झटका लगा, जब पूर्व
केंद्रीय... बिहार में चुनाव की घोषणा से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल यूनाइटेड (जदयू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के महागठबंधन को उस समय दोहरा झटका लगा,
जब पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुनाथ झा ने राजद छोड़ने तथा समाजवादी पार्टी (सपा) ने अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुनाथ झा ने
लखनऊ में सपा प्रमुख मुलायम सिंह से मिलकर लौटने के बाद बताया कि राजद में उनकी और उनके समर्थकों की हो रही लगातार उपेक्षा के कारण उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है और अब
वह अपने समर्थकों के साथ जल्द ही सपा में शामिल होंगे। इधर झा ने राजद से इस्तीफा देने की घोषणा की, उससे थोड़ी देर बाद हीं दूसरी ओर लखनऊ में सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने
जदयू, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होने का भी एलान कर दिया। 30 अगस्त को पटना के गांधी मैदान में आयोजित स्वाभिमान रैली में सपा के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री शिवपाल
सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जदयू नेता तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पराजित करने के लिए महागठबंधन को
मजबूत करने के मुलायम सिंह यादव का संदेश सुनाया था और इसके बाद अचानक सपा के रुख में परिवर्तन से महागठबंधन के नेता सकते में हैं। राजद से इस्तीफा देकर सपा में शामिल होने की घोषणा करने वाले झा
ने कहा कि सपा ने सीटों के बटवारे में उपेक्षा से नाराज होकर जदयू, राजद और कांग्रेस गठबंधन से अलग होने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि अब पार्टी बिहार में अपने दम पर या समान विचारधारा वाले
अन्य दलों से सीटों के तालमेल कर चुनाव लड़ेगी। इस बारे में भी जल्द ही फैसला ले लिया जायेगा। इससे पूर्व महागठबंधन में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) भी सीटों के बंटवारे में पार्टी
की उपेक्षा से नाराज होकर अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। महागठबंधन ने 12 अगस्त को बिहार विधानसभा के चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा करते समय 243 सीट में से राकांपा के लिए सिर्फ तीन सीटें
हीं छोड़ी थी, जबकि जदयू और राजद ने 100-100 और कांग्रेस ने 40 सीटें ले ली थी। सपा के लिए एक भी सीट नहीं छोड़ी गई थी, और उस समय लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि सपा उनके समधी मुलायम सिंह यादव की
पार्टी है और वह अपने हिस्से की सीट से उनकी पार्टी को सीट दे देंगे। सपा की बिहार ईकाई के अध्यक्ष रामचन्द्र सिंह यादव ने कहा कि सीटों के बंटवारे में उनकी पार्टी की अनदेखी की गई। इससे पार्टी के
कार्यकर्ता बेहद नाराज थे। उन्होंने कहा कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक साथ लाने में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की अहम भूमिका रही और उनके प्रयास से ही
महागठबंधन आकार ले पाया, बावजूद इसके लालू प्रसाद यादव और कुमार ने सपा के हितों का ध्यान नहीं रखा और सीटों के तालमेल में पार्टी अध्यक्ष से राय भी नहीं ली। यादव ने कहा कि सपा की अपेक्षा थी कि
विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के तालमेल के तहत उनकी पार्टी को सम्मानजनक सीटें मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सिर्फ सीटों की बात नहीं थी, सपा को मान सम्मान भी नहीं दिया गया। सीटों के बंटवारे को
लेकर सपा से कोई बात तक नहीं की गयी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में सपा को चार सीटें मिली थी और 58 सीटों पर उसे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। इसी तरह 2005 के
नवंबर में हुए चुनाव में सपा को दो सीटों पर जीत हासिल हुयी थी और 27 सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे स्थान पर थे। सपा के प्रदेश अध्यक्ष का दावा पूरी तरह से सही नहीं है। वर्ष 2005 के फरवरी में
हुए चुनाव में सपा 142 सीट पर लड़ी थी और उसके चार प्रत्याशी विजयी हुये थे, जबकि 131 प्रत्याशियों ने अपनी जमानत गंवा दी थी। पार्टी को कुल छह लाख 58 हजार 791 मत मिला था, जो उसके चुनाव वाले
क्षेत्र में मिले कुल मत का 4.56 प्रतिशत था। इसके बाद नवंबर 2005 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 158 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे और उसमें से दो को जीत मिली, जबकि 150 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो
गयी। इस चुनाव में सपा को कुल पांच लाख 94 हजार 266 मत मिला था, जो उसके चुनाव वाले क्षेत्र में मिले कुल मत का 3.81 प्रतिशत था। सपा, राकांपा और वाम दलों के अलग चुनाव लड़ने से भाजपा गठबंधन के
साथ सीधा मुकाबला बनाने की राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयासों को गहरा झटका लगा है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) समेत छह वामदलों के मोर्चे के साथ राकांपा गठबंधन कर चुनाव लड़ने का प्रयास कर रही है। वर्ष 2010 के पिछले विधानसभा चुनाव में राकांपा 171 सीट
पर चुनाव लड़ी थी और उसके 168 प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा सके थे। पार्टी को कुल 5 लाख 28 हजार 575 वोट मिले थे, जो उसके चुनाव वाले क्षेत्र में मिले वोट का 2.58 प्रतिशत था। वहीं सपा 146 सीट पर
लड़ी और उसके सभी प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गयी। उसे कुल 1 लाख 60 हजार 848 वोट ही मिले थे और यह उसके चुनाव वाले क्षेत्र में मिले वोट का मात्र 0.92 प्रतिशत ही था। बिहार में विधानसभा के चुनाव
में जीत हार का अंतर कई क्षेत्रों में काफी कम का रहता है और ऐसे में सीधा मुकाबला नहीं होने के कारण वोटों का विभाजन होने से बड़े दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं, समाजवादी पार्टी (सपा) की
ओर से आगामी बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा करने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा है कि महागठबंधन चुनाव के पहले ही बिखर गया, तो ये
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से क्या मुकाबला करेंगे। शाहनवाज ने कहा कि राजग से मुकाबला करने के लिए गठबंधन तैयार किया गया था और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को माला पहना दी गई थी, लेकिन
बिहार विधानसभा सीट बंटवारे को लेकर उनसे पूछा तक नहीं गया। अब सपा अलग हो गई है। यह तो होना ही था। उन्होंने कहा कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव तक लालू और नीतीश भी साथ-साथ रहेंगे या नहीं, यह भी
अब देखना होगा। पूर्व में ही कहा गया था कि महागठबंधन का भविष्य नहीं है। इधर, बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) के प्रवक्ता अजय आलोक ने कहा कि राजनीति में बड़े परिदृश्य को ध्यान में रखकर
गठबंधन बनाया गया था। वैसे अभी हड़बड़ाने की जरूरत नहीं है। गठबंधन के बड़े नेता अभी सपा प्रमुख का फैसला बदलने की कोशिश करेंगे। उल्लेखनीय है कि गुरुवार को लखनऊ में सपा के संसदीय दल की बैठक के बाद
पार्टी के महासचिव राम गोपाल यादव ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जदयू, कांग्रेस और सपा में गठबंधन हुआ था, जिसे
'महागठबंधन' नाम दिया गया था। महागठबंधन में सीट बंटवारे में सपा को पांच सीटें दी गई थीं, जिसे लेकर सपा की बिहार इकाई नाराज थी। त्वरित टिप्पणी: कहां ले जाएगा यह मुलायम दांव समाजवादी
पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव बिहार के महागंठबंधन से अलग हो गए- यह खबर कई तरह से चौंकाती है। कुछ लोग यह भी पूछ सकते हैं कि वे इस गंठबंधन में थे ही कब? महागंठबंधन बिहार विधानसभा चुनाव के
लिए बना है इससे उत्तर प्रदेश के समाजवादी नेता का क्या लेना-देना? सात्विक किस्म के इस आश्चर्य को अगर थोड़ी देर के लिए छोड़ दें तो उत्तर प्रदेश के समाजवादी नेता की नाराजगी का कारण यह बताया जा
रहा है कि महागठबंधन बिहार चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी को सिर्फ सिर्फ पांच सीटें देने के लिए ही राजी था और यह फार्मूला समाजवादी पार्टी को हजम नहीं हुआ। संसद सदस्य और मुलायम सिंह यादव के भाई
रामगोपाल यादव ने कहा कि पार्टी अब अपने बूते ही बिहार चुनाव में उतरेगी। यह ठीक है कि मुलायम सिंह यादव और उनकी पार्टी का बिहार में कोई खास आधार नहीं है। वे बड़ा लाभ तो हासिल नहीं कर सकते लेकिन
बड़ा नुकसान तो पहुंचा ही सकते हैं। खासकर वहां जहां टक्कर कांटे की हो। इसमें हैरत इसलिए है कि मुलायम सिंह यादव के लालू यादव से पारिवारिक रिश्ते हैं, और लालू यादव महागठबंधन को कामयाब बनाने के
लिए जी-जान से जुटे हैं। और लालू यादव को वह समय भी याद ही होगा जब उन्होंने राम बिलास पासवान के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए सिर्फ एक ही सीट छोड़ी थी। चुनाव का नतीजा तो उनके खिलाफ
गया ही था, उसके बाद केंद्र में जो सरकार बनी उसमें न लालू यादव थे, न राम बिलास पासवान और न उनकी पार्टियां। इस समय बिहार की बाजी जितनी बड़ी है, उससे बड़े उसके जोखिम हैं।