सवा करोड़ रुपये के पैकेज वाली जॉब छोड़ अब जैन मुनि बनेंगे प्रांशुक, अमेरिका में थे डेटा साइंटिस्ट

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28 वर्षीय प्रांशुक कांठेड़ डेढ़ साल पहले अमेरिका से नौकरी छोड़कर देवास में अपने घर लौट आए थे। वह अमेरिका की कंपनी में डेटा साइंटिस्ट थे और उनका सालाना पैकेज सवा करोड़ रुपये था। Praveen Sharma


देवास। लाइव हिन्दुस्तान, Mon, 26 Dec 2022 12:42 PM Share Follow Us on __ मध्य प्रदेश के देवास जिले में रहने वाले 28 वर्षीय प्रांशुक कांठेड़ सोमवार को सांसारिक जीवन से मोह त्याग कर जैन संत


मुनि बनेंगे उन्हें प्रवर्तक जिनेंद्र मुनिजी जैन धर्म की दीक्षा देंगे। प्रांशुक डेढ़ साल पहले अमेरिका से नौकरी छोड़कर देवास आए थे। वह अमेरिका की कंपनी में डेटा साइंटिस्ट थे और उनका सालाना पैकेज


सवा करोड़ रुपये था।   प्रांशुक के पिता राकेश कांठेड़ कारोबारी हैं और घर में प्रांशुक की मां और उसका एक छोटा भाई है। अब उनका पूरा परिवार इंदौर में रहता है। देवास जिले के हाटपिपल्या में आयोजित


दीक्षा समारोह में प्रांशुक के साथ उनके मामा के बेटे MBA पास थांदला के रहने वाले मुमुक्षु प्रियांश लोढ़ा और रतलाम के मुमुक्षु पवन कासवां दीक्षित भी संयम पथ पर चलेंगे। देवास जिले के


हाटपिपल्या में रहने वाले प्रांशुक ने इंदौर के जीएसआईटीएस कॉलेज से इंजीनियरिंक की है। आगे की पढ़ाई करने के लिए वह अमेरिका चले गए थे। पढ़ाई के बाद अमेरिका में ही 2017 में डेटा साइंटिस्ट की


नौकरी जॉइन कर ली थी। प्रांशुक का सालाना पैकेज सवा करोड़ रुपये था। विदेश में रहने के बाद भी समय मिलने पर धार्मिक पुस्तकों को पढ़ते रहे और इंटरनेट के माध्यम से प्रवचन सुनते रहे। नौकरी से मोह


भंग होने पर वह जनवरी 2021 में नौकरी छोड़कर घर लौट आए थे। प्रांशुक बताते हैं कि में अमेरिका वह डेटा साइंटिस्ट थे और बाद में वहां से रिजाइन कर दिया था। मेरे गुरु भगवंतों के प्रवचन आदि सुनकर


मैंने संसार की वास्तविकता को जाना-पहचाना। वास्तव में संसार का जो सुख है, वह क्षणिक है। वह कभी भी हमें तृप्त नहीं कर पाता, अपितु तृष्णा को ही बढ़ाता है। वास्तव में जो शाश्वत सुख है, चिरकाल का


सुख है, उसी सुख को पाने के लिए प्रयास करना ही जीवन की सार्थकता है, इसलिए में जैन मुनि बनने की दिशा में अग्रसर हूं। सन 2021 में एक बार वैराग्य धारण करने का संकल्प लेकर अमेरिका से नौकरी


छोड़कर भारत आ गया। इसके बाद गुरु भगवंतों के सानिध्य में रहने लगा। माता-पिता से वैराग्य धारण करने की बात कही। माता-पिता ने एक लिखित अनुमति गुरुदेव जिनेंद्र मुनि जी को दे दी।  प्रांशुक के पिता


ने बताया कि प्रांशुक का झुकाव बचपन से ही धार्मिक कार्यों की ओर रहा है। 2007 में वह उमेश मुनि जी के संपर्क में आए। उनके विचारों से प्रभावित होकर उन्हें वैराग्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा


मिली। उस वक्त गुरु भगवंत ने उन्हें संयम पथ के लिए पूर्ण योग्य नहीं माना। इसके बाद उसने धार्मिक कार्यों के साथ पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया।