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झारखंड की आदिवासी महिलाओं ने प्रतिकूल परिस्थितियों में सिर्फ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर अलग मुकाम हासिल किया। ज्ञान, विज्ञान, खेल, कला-संस्कृति, नवाचार, शोध, शिक्षा हर क्षेत्र में आदिवासी
समाज की... झारखंड की आदिवासी महिलाओं ने प्रतिकूल परिस्थितियों में सिर्फ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर अलग मुकाम हासिल किया। ज्ञान, विज्ञान, खेल, कला-संस्कृति, नवाचार, शोध, शिक्षा हर क्षेत्र
में आदिवासी समाज की ये महिलाएं अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुईं। स्थितियां आज भी उनके लिए अनुकूल नहीं हैं। सामाजिक दवाब और सुरक्षा को लेकर संशय, आजीविका की चिंताओं से घिरी ये महिलाएं, फिर
भी रुकेंगी नहीं। तमाम संघर्षों और प्रतिकूलता के साथ कामयाबी का इनका सफर जारी है। बुधवार को आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान की ओर से आदिवासी समाज की महिलाओं के साथ एक संवाद का आयोजन किया गया।
सेंट पॉल्स कॉलेज में आयोजित संवाद में विभिन्न क्षेत्रों की आदिवासी महिलाओं ने अपने संघर्ष और सफलता की कहानी साझा की। विषम परिस्थितियों में अपनी पहचान बनाना किसी के लिए आसान नहीं विषम
परिस्थितियों के बीच अपनी पहचान बनाना आसान किसी के लिए भी नहीं होता। लेकिन, झारखंड की आदिवासी महिलाएं इससे इतर हैं। उनकी सफलता को संघर्षों ने सींचा है और प्रतिकूलताओं ने संवारा है। राह के
रोड़े और चुनौतियां इनकी संषर्घशक्ति को ऊर्जा देती हैं। ये आदिवासी महिलाएं झारखंड की नगीना हैं। हिन्दुस्तान आदिवासी महिला संवाद में विभिन्न क्षेत्रों से जुटीं महिलाओं ने बताया कि उनकी सफलता
की राह में कितने रोड़े आए और किस तरह उन्होंने इसे पार कर लक्ष्य हासिल किया। इनमें अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, उद्यमी, शोधार्थी, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, जन प्रतिनिधि, यूथ लीडर, कृषक
और मानव तस्करी के विरुद्ध जंग छेड़नेवाली जुझारू महिलाएं भी शामिल थीं। महिलाओं ने बेहतर समाज गढ़ने का जुनून साझा किया संवाद में अंतरराष्ट्रीय एथलीट अन्ना गोरेट्टी मिंज और लॉन बॉल खिलाड़ी
रूपा रानी तिर्की ने अपनी कहानी साझा कि किस तरह खेल के क्षेत्र में उन्होंने कामयाबी हासिल की। उद्यमी व सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा तिर्की ने पारंपरिक जनजातीय व्यंजनों को पांच व सात सितारा होटलों
के मेन्यू में शामिल करने का सपना साझा किया और यह भी कि किस तरह महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें पारंपरिक आदिवासी व्यंजनों के जरिए स्वालंबन का आधार दिया जा सकता है। महिलाओं के कानूनी अधिकारों
के लिए लड़नेवाली संस्था 'आली' की राज्य समन्वयक रेशमा सिंह और मानव तस्करी के विरुद्ध मुहिम चला रहीं सीता स्वांसी को उनकी गुमशुदा सहेलियों ने संघर्ष के लिए प्रेरित किया। इंग्लैंड से
शिक्षा प्राप्त कर झारखंड के गांव-गांव में डायन कुप्रथा के विरुद्ध जागरुकता का प्रचार कर रहीं युवा सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद दर्शना गोपा मिंज व बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी बोड़या की
मुखिया डॉ जया भगत ने बेहतर समाज गढ़ने का अपना जुनून साझा किया। शिक्षाविद डॉ स्वाति सोरेंग और पूजा उरांव, यूथ लीडर महिला गोल्डल बिलुंग, सामाजिक कार्यकर्ता कुंदरसी मुंडा, बरखा लकड़ा, निरंजना
हेरेंज, रोजलिया तिर्की, इन सबके अनुभव प्रेरित करने वाले थे। हिन्दुस्तान की पहल को महिलाओं ने सराहा इन आदिवासी महिलाओं ने कहा कि उनका संघर्ष न थमा है, न थमेगा। ये हर उस चुनौती को शिकस्त
देंगी, जो इनकी राह रोकती हो। उन्होंने हिन्दुस्तान की पहल की सराहना की। साथ ही यह अपेक्षा भी की कि आगे भी इस तरह के संवाद आयोजित हों, जिसमें उसके संघर्ष, सफलता की कहानी साझा हो सके।