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अररिया। वरीय संवाददाता ‘मैला आंचल जैसी कालजयी उपन्यास लिखकर अमर कथाशिल्पी भले ही अररिया... अररिया। वरीय संवाददाता ‘मैला आंचल जैसी कालजयी उपन्यास लिखकर अमर कथाशिल्पी भले ही अररिया की माटी को
अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिला दी हो। लेकिन बडे़ अफसोस की बात यह है कि आज इसी माटी पर रेणु अपनी पहचान ढूंढने को बैचेन हैं। बताया जाता है कि रेणु की स्मृति में वर्ष 1983 में अररिया शहर के उत्साही
युवकों ने ‘कॉसमॉस क्लब का गठन किया था। यही नहीं इन युवकों ने शहर के उस जमीन पर टिन से घेराबंदी कर एक अस्थायी स्टेडियम भी बनाया था, जहां आज टाउन हॉल खड़ा है। ठीक इसके बगल में सर सैयद लाइबे्ररी
भी बनी है। ‘कॉसमॉस क्लब से जुड़े लोगों ने इसका नाम रेणु स्टेडियम रखा था। यही नहीं 30 जनवरी 1983 को ‘कॉसमॉस क्लब की ओर से इस स्टेडियम में विभिन्न खेल प्रतियोगिता शुरू हुई। खास बात यह कि इसका
उद्घाटन कोई और नहीं बल्कि रेणु की पत्नी पद्मा रेणु ने की थी। क्लब के अध्यक्ष फरीद उद्दीन, सचिव तुफैद अहमद, कोषाध्यक्ष अरूण कुमार वर्मा सहित बुल्लू शरण, विनोद राय, नानू बाबा, महेन्द्र शर्मा,
सत्येन्द्र शरण, बदरे मोही, जयपाल यादव, सलाउद्दीन आदि के सक्रिय प्रयास से यहां विभिन्न खेलों का एक सीरिज चलता रहा। बैडमिंटन व कबड्डी जैसे खेल नियमित रूप से होने लगे। लेकिन आज टाउन हॉल व सर
सैयद लाइब्रेरी बनाने के साथ ही प्रशासन ने इस ‘रेणु स्टेडियम भूला दिया। शहर के साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों की मांग है कि टाऊन हाल का नाम रेणु हॉल से किया जाय। 26 पुस्तक सहित अभिनंदन ग्रंथ
लिखकर जिले में अपनी अलग पहचान बनाने वाले शहर के बुजुर्ग साहित्यकार भोला पंडित प्रणयी को इस बात को लेकर टीस है कि आखिर रेणु के साथ ऐसा क्यों हो रहा है। उन्होंने प्रशासन से शीघ्र ही टाउन हॉल
का नाम रेणु के नाम से करने की मांग की। रेण साहित्य पर शोध करने वाले नामचीन साहित्यकार बसंत कुमार राय कहा कि इससे बड़ी दुख की बात क्या होगी कि रेणु खुद अपने ही घर में बेगाने हो रहे हैं। कुछ
इसी तरह की बात डॉ. भुवनेश, डॉ. सुशील कुमार श्रीवास्तव, रहबान अली राकेश, रफी हैदर अंजूम, ठाकुर शंकर कुमार, हारूण रसीद गफिल, राम शरण मंडल आदि ने भी कही। बोले अधिकारी: इस संबंध में मुझे कोई
जानकारी नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अमर कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु जी जिले के गौरव हैं। हम सबों के आदर्श हैं। यदि इस तरह का कोई मामला उनके संज्ञान में आया तो वे इसे अवश्य देखेंगे। -शैलेश
चन्द्र दिवाकर, एसडीओ, अररिया।