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इस बार 30 अक्तूबर शाम छह बजे से पहले ही शरद पूर्णिमा लग जाएगी। प्रदोष भी रहेगा और पूरी रात निषीथ-अर्धरात्रि में पूर्णिमा रहेगी। आश्विन मास की यह पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से खास महत्व वाली है।
मान्यता... Anuradha Pandey स्वप्निल डागुर, नई दिल्लीWed, 28 Oct 2020 07:07 AM Share Follow Us on __ इस बार 30 अक्तूबर शाम छह बजे से पहले ही शरद पूर्णिमा लग जाएगी। प्रदोष भी रहेगा और पूरी
रात निषीथ-अर्धरात्रि में पूर्णिमा रहेगी। आश्विन मास की यह पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से खास महत्व वाली है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात ऐरावत पर बैठ कर देवराज इन्द्र महालक्ष्मी के साथ धरती
पर आते हैं और पूछते हैं कि कौन जाग रहा है। जो जाग रहा होता है और उनका स्मरण कर रहा होता है, उसे ही लक्ष्मी और इन्द्र की कृपा प्राप्त होती है। श्रीकृष्ण-राधा के साथ समस्त प्राणियों को शरद
पूर्णिमा का बेसब्री से इंतजार होता है। क्या देवता, क्या मनुष्य,क्या पशु-पक्षी, सभी साथ नृत्य कर रहे हैं, मधुर संगीत में। चंद्र देव पूरी 16 कलाओं के साथ इस रात सभी लोकों को तृप्त करते हैं।
आकाश में एकक्षत्र राज होता है इस दिन उनका। 27 नक्षत्र उनकी पत्नियां हैं- रोहिणी, कृतिका आदि। रातभर उनकी मुस्कराहट संगीतमय नृत्य करती हैं। जड़-चेतन, सब के सब मंत्रमुग्ध। राधा के एकनिष्ठ कृष्ण
इस बात को जानते थे। इसलिए इसी दिन उन्होंने खेला महारास। गोपियां विरह में थीं, तो आश्विन शुक्ल पक्ष में चंद्रदेव उन्हें और विरह प्रदान कर रहे थे। आश्विन पूर्णिमा हुई और किसी तरह गोपियों का
दिन बीता। रात हुई तो चंद्र देव ने अपना जादू चलाया और उधर से बांसुरी की मनमोहक तान। इस महारास का श्रीमद्भागवत में मनमोहक वर्णन भी है। देवी-देवताओं में होड़ लगी है। सब विमान में सवार होकर एकटक
देख रहे हैं। गोपियों के ऐसे भाग्य से चंद्रदेव और उनकी सभी पत्नियां बार-बार गोपियों के जन्म को ही सार्थक मान रही हैं। हां, अपने को धन्य मान भी रही हैं कि भगवान की लीला में उनका भी योगदान है।
भगवान धीरे-धीरे नाच रहे हैं। गोपियां गा रही हैं इस दिन को रास पूर्णिमा और कौमुदी महोत्सव भी कहते हैं। महारास के अलावा इस पूर्णिमा का अन्य धार्मिक महत्व भी है, जैसे शरद पूर्णिमा में रात को
गाय के दूध से बनी खीर या केवल दूध छत पर रखने का प्रचलन है। ऐसी मान्यता है कि चंद्र देव के द्वारा बरसायी जा रही अमृत की बूंदें खीर या दूध को अमृत से भर देती है। इस खीर में गाय का घी भी
मिलाया जाता है। इस रात मध्य आकाश में स्थित चंद्रमा की पूजा करने का विधान भी है, जिसमें उन्हें पूजा के अन्त में अर्ध्य भी दिया जाता है। भोग भी भगवान को इसी मध्य रात्रि में लगाया जाता है। इसे
परिवार के बीच में बांटकर खाया जाता है प्रसाद के रूप में, सुबह स्नान-ध्यान-पूजा पाठ करने के बाद। लक्ष्मी जी के भाई चंद्रमा इस रात पूजा-पाठ करने वालों को शीघ्रता से फल देते हैं। अगर शरीर साथ
दे, तो अपने इष्टदेवता का उपवास जरूर करें। इस दिन की पूजा में कुलदेवी या कुलदेवता के साथ गणेश और चंद्रदेव की पूजा बहुत जरूरी है।