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अजय श्रीवास्तव ब्रितानी हुकूमत से आजाद होकर भारत एक स्वतंत्र मुल्क तो बना मगर देश विभाजन की शर्त पर। ब्रिटिश शासन की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का दुष्परिणाम हमें मुल्क विभाजन के रूप में
स्वीकार करना पड़ा। अलबत्ता देश के विभाजन की पृष्ठभूमि काफी पहले से तैयार होने लगी थी। मुगल साम्राज्य के पतन और मुसलिम रियासतों के दंतहीन होने के बाद सत्ता और समाज का संतुलन नए सिरे से तय हो
रहा था। इस दौरान सांप्रदायिक पागलपन भी बढ़ा। यही नहीं, इस नफरत की एक राष्ट्रीय शक्ल भी बनने लगी थी। पहले यह नफरती हिंसा गांवों में नहीं फैलती थी, वहां लोगों का सौहार्द और आपसी भाईचारा इतना
मजबूत होता था कि वे एक-दूसरे के लिए जान तक दे देते थे। पर जब नफरत का रकबा बढ़ा तो सब कुछ बदल गया। शहरों में ऐसे हालात से निपटना पुलिस के लिए तो आसान होता था पर गांवों में स्थिति बिगड़ते देर
नहीं लगती थी। बंगाल विभाजन 19 जुलाई,1905 को बंगाल विभाजन जो धर्म के आधार पर तत्कालीन वायसरॉय कर्जन ने किया, वह भी मुल्क के बंटवारे का एक आधार बना। ब्रितानी शासन का मानना था कि अगर बंगाल को
धर्म के आधार पर दो भागों में बांट दिया जाए तो सांप्रदायिक रंजिश में कमी आएगी और इतने बड़े राज्य का विकास भी सुचारू रूप से हो सकेगा। उन दिनों बंगाल का क्षेत्रफल फ्रांस के बराबर था मगर आबादी
वहां से बहुत अधिक थी। बंगाल में ही बिहार, उड़ीसा और पूर्वोत्तर के प्रदेश समाहित थे। यह भी सत्य है कि उन दिनों पूर्वी क्षेत्र की घोर उपेक्षा होती थी। वायसरॉय कर्जन का सोचना था कि बंगाल के दो
टुकड़े करने से पूर्वी क्षेत्र में बेहतर विकास के अवसर पैदा होंगे। स्कूल, कॉलेज और अस्पताल जिसका उस क्षेत्र में घोर अभाव था, खोला जा सकेगा। यहां तक वे सही थे मगर धर्म के आधार पर विभाजन गलत था।
हो सकता है कि उनकी यह सोच रही हो कि मुसलिम प्रदेश में अगर ज्यादातर मुसलमानों को बसा दिया जाए तो सांप्रदायिक मनमुटाव कम होंगे। लीग की स्थापना बंगभंग के परिणामस्वरूप देशभर में धरना-प्रर्दशन
शुरू हो गए। कांग्रेस भी इसके विरोध में खुलकर सामने आ गई। ब्रितानी शासन को देशव्यापी विरोध के कारण 1911 में बंगाल विभाजन को रद्द कर पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को फिर से एक करने की घोषणा करनी
पड़ी। दिलचस्प है कि बंगभंग की घोषणा के बाद 1906 में मुसलिम लीग की स्थापना हुई। लीग से जुड़े नेताओं का सोचना था कि मुसलमानों को बहुसंख्यक हिंदुओं से कम अधिकार उपलब्ध हैं तथा भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करती है न कि उनके समाज का। मुसलिम लीग के 1906 के अधिवेशन में जो प्रस्ताव पास हुए, उनमें से एक यह भी था कि बंगभंग उनके समाज के लिए अच्छा है। लीग के 1908 के
अधिवेशन में यह भी प्रस्ताव पारित हुआ कि कांग्रेस ने बंगभंग के विरोध का जो प्रस्ताव रखा है, वह स्वीकृति के योग्य नहीं है। साफ तौर पर मुसलिम लीग ने कांग्रेस के इतर अपना रास्ता चुन लिया था।
इकबाल की मांग 1930 में हुए लीग के अहम सम्मेलन में प्रसिद्ध उर्दू शायर इकबाल ने पहली बार अलग राज्य की मांग उठाई। यह पहला अवसर था जब किसी ने धर्म के आधार पर सार्वजनिक मंच से एक अलग राज्य की
मांग उठाई थी। उन दिनों ये बहुत बड़ी बात थी मगर मुसलिम लीग के सबसे बड़े नेता मोहम्मद अली जिन्ना इस बात से सहमत नहीं थे। 1935 में सिंध प्रांत की विधानसभा में भी यही मांग उठी। अभी तक जिन्ना
हिंदू-मुसलिम एकता के हिमायती थे मगर सार्वजनिक मंचों से उन्होंने कांग्रेस पर ये आरोप लगाने शुरू कर दिए थे कि कांग्रेस मुसलमानों के हितों की रक्षा करने में नाकाम साबित हुई है। लीग का लाहौर
सम्मेलन अब बात करते हैं 1940 में लाहौर में हुए मुसलिम लीग के सम्मेलन की। इस सम्मेलन में तकरीर करते हुए मोहम्मद अली जिन्ना ने साफ कहा कि मुसलमानों को अलग राष्ट्र चाहिए, वो इससे कम पर समझौता
करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। कांग्रेस ने जिन्ना की मांग का पुरजोर विरोध किया। हिंदू महासभा और अन्य हिंदूवादी संगठनों को भी देश विभाजन कतई मंजूर नहीं था। उधर, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद
ब्रिटेन बेहद कमजोर हो गया था और उसने तय किया कि वो भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे देगा। लॉर्ड माउंटबेटन को इसीलिए भारत भेजा गया। माउंटबेटन ने भारत पहुंचते ही सभी पक्षों से
बातचीत शुरू कर दी। महात्मा गांधी और कांग्रेस किसी भी हालत में मुल्क का बंटवारा नहीं चाहते थे, जबकि जिन्ना और मुसलिम लीग धर्म के आधार पर देश विभाजन पर अडिग थे। ब्रितानी हुकूमत पर दबाव डालने
के लिए जिन्ना ने 16 अगस्त,1946 के दिन ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का एलान किया। जिन्ना अंग्रेजों को यह दिखाना चाहते थे कि देश के मुसलमान उनके साथ हैं और वे अपने लिए एक अलग देश चाहते हैं। ‘डायरेक्ट
एक्शन डे’ पर दोनों तरफ से झड़प होने लगी और उसी रात बंगाल में हिंसा शुरू हो गई। यह हिंसा छह दिनों तक चली, जिसमें हजारों लोगों की जान गई। इस हिंसा के ठीक एक साल बाद नोआखाली में भीषण दंगा शुरू
हुआ। 19 अक्तूबर,1946 को ब्रिटिश-भारतीय सेना को नोआखाली भेजा जाता है। सेना को सही जगह पहुंचने में एक हफ्ते और निकल जाते हैं, तब तक स्थिति बेहद बिगड़ जाती है। सात नवंबर, 1946 को महात्मा गांधी
ने दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा किया। उन्होंने पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगाने की कोशिश की। वे वहां हर कीमत पर सौहार्द चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अथक प्रयास किए और सभी समुदाय के लोगों को शांति
और सौहार्द की पहल में साथ लिया। माउंटबेटन योजना इस बीच, देश की आजादी का वह खंडित मानचित्र भी तैयार हो रहा था, जिसके कारण भारत की आजादी के साथ पाकिस्तान अस्तित्व में आया। माउंटबेटन ने भारत के
विभाजन का मसौदा पेश किया जिसे सभी ने स्वीकार कर लिया।15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद तो हो गया लेकिन द्विराष्ट्र के सिद्धांत पर। अंग्रेजों ने भारत को खंडित कर दो
राष्ट्र बना दिया। भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना, भारत स्वत्रंता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। सरहदें बंटने के साथ दोनों कौमों के लोगों की भावनाएं भी बंट गईं। सैकड़ों सालों के भाईचारे को
बड़ा आघात लगा। यह आघात आज भी दोनों मुल्कों की मानसिकता को एक बड़े अफसोस के साथ मथता है।