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वैज्ञानिकों ने यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल मेस्सेल पिट की पुरानी झील की तलहटी से 4.7 करोड़ साल पहले की एक मक्खी का जीवाश्म ढूंढ निकाला है। मक्खी के इस जीवाश्म में मौत से पहले खाए गए भोजन का
अंश भी मिला है। वैज्ञानिकों ने इसे बड़ी कामयाबी बताया है। इससे उस समय की पारिस्थितिकी को समझा जा सकेगा। वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व वियना विश्वविद्यालय के फ्रिज ग्रिम्सन कर रहे थे। इस दल
में अलग-अलग देशों के वैज्ञानिक और शोधकर्ता शामिल हैं। वैज्ञानिकों को अभी तक इस जीवाश्म मक्खी की प्रजाति का पता नहीं चल सका है। हालांकि, इसके पेट से विभिन्न पौधों से पराग मिले हैं, जिसे इस
मक्खी ने मौत के पहले खाया होगा। इस जीवाश्म से वैज्ञानिकों को दुर्लभ कीट पतंगों के खाने-पीने के तरीकों, उस समय के पारिस्थितिकी तंत्र और परागकण चूसने वाली मक्खियों के बारे में बहुत कुछ जानकारी
मिलने का अनुमान है। वहां वैज्ञानिकों को केवल इस मक्खी ने ही नहीं, बल्कि उसके पेट के अंदर भरे हुए भोजन ने भी खूब आकर्षित किया है। मक्खी के पेट से निकलने वाले जीवाश्म पराग का उपयोग कर
वैज्ञानिक मक्खी और पौधों के बीच के संबंध का पता लगा सकते हैं। इस खोज की पूरी दुनिया में परागकणों के मिलने के कारण खूब चर्चा की जा रही है। मधुमक्खियों, तितलियों और भौंरों को विशिष्ट परागणक
(फूलों का पराग खाने वाला) के रूप में जाना जाता है। फूलों को खिलाने में इन मक्खियों की विशेष भूमिका होती है। बॉयोडाइवर्सिटी रिसर्च आॅफ यूनिवर्सिटी आॅफ वियना में पादप विज्ञान विभाग के फ्रिजर
ग्रियर्सन ने कहा कि मक्खी के पेट में हमें जो समृद्ध पराग सामग्री मिली, उससे पता चलता है कि 4.7 करोड़ साल पहले मक्खियां पराग को खिलाती और ले जाती थीं। उन्होंने बताया कि इस मक्खी के पेट से
निकाले गए पराग में डिकोडन (वॉटरविलो) और पार्थेनोसिसस (वर्जिन आइवी) जैसे अनाजों के फूल का रस मिला है। वाटरविलो एक छोटी झाड़ी है जो गीली जमीन या झीलों के किनारे उथले पानी में पनपती है। वर्जिन
आइवी भी ऐसे ही इलाके में पाई जाती है। ग्रियर्सन ने कहा कि यह संभव है कि मक्खी खाद्य स्रोतों के बीच लंबी दूरी की उड़ानों से बचती थी। इसलिए इसका जीवाश्म इस झील के तलछट से मिला है। इससे पहले
भारत में भी जीवाश्म से जुड़ी एक बड़ी खोज की गई। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के डाला में तीन सदस्यीय वैज्ञानिकों लगभग 174 करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्म खोज निकाला। इसके पहले विश्व का सबसे पुराना और
सबसे बड़ा जीवाश्म सलखन में मिल चुका है। इसके बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका का जीवाश्म माना जाता है। सोनभद्र में शोध में जुटे दल के भू वैज्ञानिक मुकुंद शर्मा ने बताया कि डाला की बाडी स्थित
पहाड़ियों में सलखन से भी पुराने जीवाश्म पाए गए हैं। सलखन के जीवाश्म 160 करोड़ वर्ष पुराने हैं। वहीं, डाला बाडी में मिले जीवाश्म दो मीटर की परत में लगभग 174 करोड़ वर्ष पुराने हैं। यहां
वैज्ञानिकों ने 25 जनवरी से तीन फरवरी तक शोध किया। भू वैज्ञानिक मुकुंद शर्मा ने बताया कि यहां तीन प्रकार के लेयर पाए जा रहे हैं, जिसकी संरचनात्मक जांच की जा रही है। ये जीवाश्म उस समय के हैं,
जब पृथ्वी पर जीवन नहीं होता था, केवल वन होते थे। उन्होंने कहा कि इस पर एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार होगी, जिसे प्रदेश सरकार को दिया जाएगा। वियना के बॉयोडायवर्सिटी रिसर्च यूनिवर्सिटी के
वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं ने 4.7 करोड़ साल पुराना एक जीवाश्म ढूंढा है। यह जीवाश्म एक मक्खी का है, जिसके पेट में समृद्ध पराग सामग्री मिली है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मेस्सेल पिट की पुरानी
झील की तलहटी से जीवाश्म खोजा गया है। इस खोज को जैविक पारिस्थितिकी के अध्ययन की दिशा में बड़ी छलांग माना जा रहा है।