राजपाटः जंग वर्चस्व की

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शत्रुघ्न सिन्हा फिलहाल कांग्रेस में हैं। फिर भी भाजपा में उनकी दिलचस्पी कम नहीं हुई है। ऐसा स्वाभाविक भी है। आखिर जिस पार्टी में उन्होंने तीन दशक खपाए हों, उसकी गतिविधियों से वे निर्विकार


कैसे रह सकते हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा के भीतर जारी उठा-पटक पर उनके ट्वीट ने सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोरी। उन्होंने लिखा-भाजपा मध्यप्रदेश में तीन खेमों में बंट गई है-महाराज, नाराज और


शिवराज। इसके लिए बिहारी बाबू की चाहे जितनी लानत मलानत हुई हो पर उन्होंने गलत तो लिखा नहीं था। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को पार्टी आलाकमान ने पहले जैसी खुली छूट इस बार नहीं दी है, यह


हकीकत तो शिवराज की मंत्रिमंडल विस्तार से पहले की गई इसी टिप्पणी से सामने आ गई थी कि विष तो शिव को ही पीना पड़ता है। जाहिर है कि सरकार के नेतृत्व की अपनी चौथी पारी में शिवराज दबाव में काम कर


रहे हैं। यह दबाव ज्योतिरादित्य सिंधिया उन पर सीधे डालने की हैसियत में भले न हों पर आलाकमान पर तो उनका जादू सिर चढ़कर रंग दिखा ही रहा है। ऊपर से शिवराज सिंह की लगातार सूबे की राजनीति में बने


रहने की लालसा भी शिखर नेतृत्व को रास नहीं आ रही। मंत्रिमंडल के विस्तार में शिवराज अपने करीबियों के साथ न्याय नहीं कर पाए, तो फिर उनमें नाराजगी होगी ही। इस नाते एक गुट नाराज नेताओं का उभर ही


रहा है। एक गुट की वफादारी पार्टी के बाद सिंधिया के प्रति होना स्वाभाविक है, चौहान के प्रति नहीं। ऊपर से कुछ ऐसे नेता भी हैं ही, जिनकी मुख्यमंत्री बनने की हसरत पर चौहान कुंडली मारकर बैठ गए


हैं। नतीजतन पहले तो महीने भर से भी ज्यादा वक्त तक वे अपने मंत्रिमंडल में अकेले थे। फिर सीमित विस्तार कर आधा दर्जन मंत्रियों को शामिल किया। अब 28 और मंत्री लिए तो उसमें भी खासी मशक्कत करनी


पड़ी। खुद फैसले लेने का दौर अब गया। राजपाटः तेज हुई सरगर्मी हर फैसले के लिए दिल्ली दरबार में दौड़ना पड़ रहा है। यानि जिस संस्कृति को कांग्रेसी बता भाजपा दशकों तक कोसती रही, अब उसके भीतर भी वही


संस्कृति पल बढ़ रही है। आरोप प्रत्यारोप के बीच मध्यप्रदेश की सियासत में नित नए रंग दिख रहे हैं। भाजपा के असंतुष्ट विधायक डॉक्टर गोविंद सिंह ने ग्वालियर में पत्रकारों के सामने शिवराज चौहान को


सलाह दी कि सिंधिया समर्थक किसी मंत्री को राजस्व विभाग न दें। आरोप उनके सिंधिया पर थे। नाराज गुना के भाजपा सांसद केपी यादव भी कम नहीं हैं। सिंधिया को उनके गढ़ में शिकस्त देकर वे नायक की तरह


उभरे थे। अब वही सिंधिया भाजपा में हैं तो यादव का कद अपने आप बौना हो गया है। उमा भारती तो लगातार फिकरे कस ही रही हैं। उन्होंने भी ट्वीट कर दिया-जो पार्टी में आ गए हैं उन्हें यही कहूंगी कि


किसी विभाग को मलाईदार न समझें। ज्योतिरादित्य के कारण आपकी नैया पार लग गई। हमारे यहां सब सेवक होते हैं। यहां मलाई नहीं होती। विस्तार के बाद मंत्रियों को विभागों के बंटवारे में हुई देरी से


इतना तो साफ है कि विभागों को लेकर सिंधिया ने चौहान की घेरेबंदी की। पार्टी में वर्चस्व की जंग तो भीतर ही भीतर छिड़ चुकी है, कोई माने या न माने? प्रस्तुतिः अनिल बंसल