कतर्नियाघाट जंगल में बढ़ रहा गैंडों का कुनबा - attraction of kartaniya ghat farest, no of gainda increase - uttar pradesh bahraich general news

feature-image

Play all audios:

Loading...

कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग में गैंडो का कुनबा बढ़ रहा है। By JagranEdited By: Updated: Mon, 14 Dec 2020 11:01 PM (IST) मुकेश पांडेय, बहराइच : कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग में गैंडो का कुनबा


बढ़ रहा है। तकरीबन आठ गैंडे वन क्षेत्र की शोभा बढ़ा रहे हैं। नेपाल के रायल बर्दिया नेशनल पार्क से आए गैंडो को यहां की आबोहवा रास आ रही है। खासतौर से कौड़ियाला बीट का जंगल गैंडो का पसंदीदा


स्थल बन रहा है। ऐसे में सैलानियों का रुख कौड़ियाला बीट के जंगल की ओर हो सकता है। गेरुआ, कौड़ियाला और नेपाल की भादा (सरयू) नदी से घिरा होने के कारण गैंडो को नेपाल के रायल बर्दिया नेशनल पार्क से


खाता कारीडोर के रास्ते भारतीय सीमा के जंगल में प्रवेश करने में कोई परेशानी नहीं होती है। खुला जंगल होने के कारण आसानी से आते-जाते हैं। इससे वर्षाकाल में ही नहीं गर्मी, सर्दी के मौसम में


गैंडो को पानी उपलब्ध हो जाता है। यह जल से भरपूर दलदली भूमि का इलाका है। यहां प्रचुर मात्रा में लंबी घासों व नरकुल की बाहुल्यता है। यही कारण है कि गैंडो का यहां का वातावरण काफी रास आ रहा है।


कौड़ियाला बीट के जंगलों में गैंडे अकसर चहलकदमी करते देखे जा सकते हैं। जानकारों के अनुसार कतर्नियाघाट के जंगलों में गैंडो की संख्या सात से आठ तक पहुंच गई है, जो पूर्व के मुकाबले अधिक है। पहले


यहां चार की तादाद में ही गैंडे देखे जाते थे। --------------- शांत स्वभाव के कारण सैलानियों को पसंद -डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अध्ययन में कतर्निया जंगल गैंडो के प्राकृतिक वास के लिए उपयुक्त पाया


गया है। 12 फीट लंबे एवं छह फीट तक ऊंचे विशालकाय गैंडे अपनी धीमी चाल एवं शांत स्वभाव के कारण सैलानियों को भाते हैं। सौ वर्ष की आयु के स्वामी गैंडो के संरक्षण के मद्देनजर गैंडा पुनर्वास केंद्र


की स्थापना के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने प्रस्ताव तैयार कराया है। --------------- खुला संरक्षित वन क्षेत्र होने के कारण नेपाल के खाता कारीडोर के रास्ते कतर्निया जंगल में


प्रवेश करने में कोई परेशानी नहीं होती है। गैंडों के लिए यहां का वातावरण अनकूल है। गैंडा पुनर्वास केंद्र की स्थापना का प्रस्ताव भेजा गया है। -यशवंत, प्रभागीय वनाधिकारी