
- Select a language for the TTS:
- Hindi Female
- Hindi Male
- Tamil Female
- Tamil Male
- Language selected: (auto detect) - HI
Play all audios:
एक तरफ गंगा किनारे दर्जनों की संख्या में जलती चिताएं तो दूसरी ओर मंच पर प्रवाहमान नृत्य और संगीत की गंगा। भारतीय सनातन संस्कृति भी तो यही है। यहां मृत्यु भी एक उत्सव है और शिव इस उत्सव के
कारक। सोमवार को शिव को प्रिय महाश्मशान में भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपरा कुछ ऐसे ही रूप में निखरी। अवसर था बाबा महाश्मशाननाथ सेवा समिति की ओर से आयोजित बाबा श्मशाननाथ वार्षिक श्रृंगार
महोत्सव के अंर्तगत हुए नृत्य संगीत कार्यक्रम का। वर्षो पुरानी परंपरा को जीवित रखते हुए जहां नगर वधुओं ने नृत्य प्रस्तुत कर बाबा को अपनी श्रद्धा समर्पित की तो वहीं फेमस सेमी क्लासिकल सिंगर
पद्मश्री डॉ सोमा घोष ने मधुर स्वर की चाशनी में लिपटे बोलों को बाबा चरणों में अर्पित कर उनका साथ दिया। कार्यक्रम में डॉ सोमा घोष की उपस्थिति ने इस बात का संदेश दिया कि समय ने रुढि़यों को बदला
है और वर्जनाओं को तोड़ा है। शिव तांडव से हुई कार्यक्रम की शुरुआत डॉ घोष ने कार्यक्रम की शुरुआत शिव तांडव स्त्रोत से की। उसके बाद उन्होंने ठुमरी 'हमरी अटरिया पर आजा रे सांवरियां'
सुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने चैती 'कौने कारन सइयां भये हो' सुना कर वाहवाही बटोरी। नगर वधुओं ने भी नृत्य की प्रस्तुति दी। हारमोनियम
पर पंकज मिश्र, तबले पर पंकज राय ने, की बोर्ड पर हेमंत सिंह ने साइड रिदम पर अंकित सिंह ने व गायन में दिव्यांग और काजल ने संगत की। स्वागत व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने व धन्यवाद संयोजक मनीष खत्री
ने दिया। संचालन अंकिता खत्री ने किया। इस अवसर पर डीएम योगेश्वर राम मिश्र सहित बड़ी संख्या में प्रशासनिक अधिकारी व संगीत प्रेमी मौजूद थे। बही परम्परा का विशुद्ध धारा मणिकर्णिका घाट पर बाबा
श्मशान नाथ को संगीतांजलि की परंपरा कोई आज की नहीं है। इसकी शुरुआत हुए तकरीबन फ्भ्0 साल हो गये। फेमस फोटोग्राफर व श्मशान संगीतांजलि कार्यक्रम के संयोजक मनीष खत्री बताते हैं कि राजा जय सिंह को
इस परंपरा की शुरुआत करने का श्रेय जाता है। उन दिनों बाबा श्मशान नाथ मंदिर पर छत नहीं थी। उन्होंने इसका जीर्णोद्धार कराया। मान्यता थी कि मंदिर के निर्माण या जीर्णोद्धार के बाद वहां संगीत भजन
का कार्यक्रम होगा। पर उस समय के संगीतचार्यो ने श्मशान पर प्रस्तुति देने से मना कर दिया। तब नगरवधुएं मान्यता की पूर्ति के लिए श्मशान में संगीतांजलि देने के लिए आगे आयीं। तब से यह परंपरा कायम
है। वर्तमान में नगर वधुएं ही यहां पर संगीत और नृत्य प्रस्तुत करती हैं पर उसमें से संगीत गायब है। समय के साथ परंपराओं में अशुद्धियां भी समाहित हुई। परंपराओं को इन्हीं अशुद्धियों से दूर करने
के प्रयास में हम लोगों ने पद्मश्री सोमा घोष से यहां पर प्रस्तुति देने का निवेदन किया और उन्होंने अपनी स्वीकृति भी दे दी। अब परंपरा की गंगा अपने विशुद्ध रुप में आगे की ओर प्रवाहमान होगी।
National News inextlive from India News Desk