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इस्लामाबाद में दक्षेस सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के रवैये की भारतीय संसद में निंदा के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने पड़ोसी मुल्क पर शुक्रवार रात परोक्ष तौर पर निशाना
साधा और कहा कि वह ‘द्वेष की पराकाष्ठा’ के चलते अपनी नाक कटवा कर भी भारत का बुरा चाहता है। भागवत ने यहां एक पुस्तक के लोकार्पण समारोह में पाकिस्तान की ओर सीधा इशारा करते हुए कटाक्षपूर्ण लहजे
में कहा, ‘द्वेष की पराकाष्ठा तो ऐसी है कि हमारी (पाकिस्तान की) अपनी हालत पतली है। लेकिन हम (पाकिस्तान) अपनी नाक कटवा कर भी पड़ोसी (भारत) के लिये अपशकुन करेंगे। हमारा पड़ोसी (पाकिस्तान) ऐसा
ही बर्ताव कर रहा है।’ उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिये बगैर कहा, ‘बन गये अलग (मुल्क)..ठीक है बन गये। हम मदद करने के लिये तैयार हैं। अपने बल पर खड़े हो जाओ। हम जब बार-बार दोस्ती का हाथ बढ़ाते
हैं, तो वह (पाकिस्तान) ऐसी व्यवस्था करता है कि हम दोस्ती का हाथ न बढ़ा सकें।’ भागवत ने कहा कि दुनिया के मुल्कों में महाशक्ति (सुपर पॉवर) बनने के लिये स्पर्धा चल रही है जिससे विकसित और
विकासशील देश पिस रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘वैश्विक चिंतक सोच रहे हैं कि अगर ये स्पर्धा ऐसी ही चली, तो दुनिया बचेगी या नहीं। दुनिया अपने सवालों के जवाब के लिये भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख
रही है। इन प्रश्नों के उत्तर देकर हम दुनिया के सिरमौर राष्ट्र बन सकते हैं।’ भागवत, छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन चरित्र बताने वाली मराठी किताब ‘शककर्ते शिवराय’ के हिन्दी अनुवाद पर आधारित
पुस्तक ‘शकनिर्माता शिवराय’ के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे। मराठी में यह किताब विजयराव देशमुख ने लिखी है, जबकि मोहन बांडे ने इसका हिन्दी अनुवाद किया है। संघप्रमुख ने लोकार्पण समारोह में
कहा कि शिवाजी के समय ‘सांप्रदायिकता’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ जैसे शब्द चलन में नहीं थे। लेकिन वह शासक के रूप में सभी मनुष्यों के प्रति समान भाव रखते हुए अपने कर्तव्य का पालन करते थे। उन्होंने
कहा कि इन दिनों देश में शासन करने वाले सभी लोगों को शिवाजी के राज से सुशासन की प्रेरणा लेनी चाहिये, भले ही मौजूदा शासनकर्ता किसी भी राजनीतिक दल से क्यों न ताल्लुक रखते हों। भागवत ने कहा, ‘आज
देश में धर्म की सुरक्षा के सामने कमोबेश वे ही चुनौतियां है, जो शिवाजी के समय थीं। इस सिलसिले में शिवाजी के समय और मौजूदा हालात में कोई विशेष अंतर नहीं है। यहां धर्म से मेरा तात्पर्य किसी
संप्रदाय से नहीं है बल्कि लोगों के उस स्वाभाविक कर्तव्य से है जिसके पालन से सब मनुष्य सुखी होते हैं और हमेशा एकजुट रहकर उन्नति के पथ पर आगे बढ़ते हैं।’